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पंथि हुताशन वन अभिराम, आपइ यक्ष कुसुम बहु ताम, कुसुम कमल आप्यां संघनइ, जिणहरि जिण पूज्या इक मनइ. ८५ स्नात्र महोत्सव केरा जंग, करतां हिअडइ धरिज्यो रंग, जिनवर जनम समय जब होइ, अच्युत इंद्र तणी परि जोइ. ८६ मेरु शिखरि जिन लेइ जाइ, चउसठि इंद्र मिलइ तिणि ठाइ, आणइ कमल सहस पांखडी, जोतां सुख पामइ आंखडी. ८७ भरिआ कलसला निर्मल नीर, न्हवीउं जिनवर साहस धीर, जंबूदीवपनंत्ती जिहां, ए आलावउ विगतिइं तिहां. ८८ हुआ जे तीर्थकर हुसिइ, जनम समयपरि एहजि तिसिइ, इणि उठइ जिनवरनां स्नात्र, करिज्यो जिम निर्मल हुइ गात्र. ८९ जिहां जिन बोलइ तिहां सिउ वाद, धुरि उत्सर्ग अनई अपवाद, एकजि जीवदया यति तणइ, ए उत्सर्ग सहूको भणइ. ९० द्रव्य क्षेत्र नइ काल जि भाव, ते ऊपरि तुम्हे धरिज्यो भाव, जे पद छइ अपवादह तनु, लाभ छेहाचं कारण घj. ९१ ऋषिनई विराधना जल तणी, तिम बीजी वरजी छइ घणी, कल्पसूत्रमई मन उल्लासि, सुणिउ सुललित सहिगुरु पासि. ९२ वीरतणु तिहि वचनविलास, सुणी एकई ऊणा पंचास, आलावा बोल्या जिनराज, रिषिनई सामाचारी काज. ९३ तिहिं विहरिवा तणइ अधिकारि, ते अलावउ हीइ विचारि, कही कृणाला नामई किसी, इंद्र तणइ नहीं नगरी इसी. ९४ औरावती नदी तसु तीरि, गाऊ अढइ वहइ नितु निरि, इसीउ पहट उल्लंघी वेगि, आगइ मुनि जाता संवेगि.
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