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देवलोकि बारे सुविचारि, पर्वत कूट तणइ अधिकारि, शाश्वत जिनसंख्या सुणि जाण, बोल्या जिनप्रासाद प्रमाण. ७४ मोटा काज प्रतिष्ठा तणा, तीरथ जिनयात्रादिक घणां, डाहु मुनि जु तेडिउ जाइ, घणउ लाभ लाभइ तिणि ठाइ.७५ यात्रा तणी घणी छइ साषि, नवि कीजइ ते अक्षर दाषि, रथयात्रा राउ संप्रति तणी, बीजी अबर हुई अति घणी. ७६ मुनि नई चैत्य भगति एवडी, बोली छइ सुणज्यो जेवडी, गामि नगरि पहुतु किणि ठाय, दीटुं चैत्य नवउली जाय. ७७ पइठउ जिनप्रासाद मझारि, देषइ आशातना अपारि, भमरी मंदिर झाझा जाल, पडकालिआ तणां चउसाल. ७८ ते ऊवेषी जाइ कि वारि, प्रायश्चित गुरु लागइ च्यारि, जउ फेडइ तु लहुआं जाणि, चैत्य भगति करतांसी काणि? ७९ जिनतीरथ रथयात्रा कही, चैत्य भगति मुनिवर नई सही, छेदग्रंथि ए अक्षर इस्या, ते मझ हिअडइ गाढा वस्या. ८० रिषिनई पूजार्नु उपदेश, देतां दोष नहीं लवलेस, भद्रबाहु जे श्रुतकेवली, तिणि आवश्यकि बोलिउं वली. ८१ वयरसामि परि कीधी किसी, जोज्यो हृदय विमासी तिसी, नगरी माहेश्वरी मझारि, संघ भणइ सहि गुरु अवधारि. ८२ आविउ पर्व पजूसण आज, बौद्धमती राजार्नु राज, तिणि राषी मालिनी कोडि, श्वेतांबर नई लागइ खोडि. ८३ जाणी फूल न मूकिङ एक, वइरसामि मनि धरइ विवेक, गया पदमद्रहि हरिष्या हीइ, लक्ष्मीदेवि कमल करि दीइं. ८४
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