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जिनमति वली न माने जेअ, आवो उत्तर आपुं तेअ, चिहुं दिशि चुपट मंडिओ वाद, ऊतारिसु कुमतिनो नाद. १६ धुरि नवि मानउ देवु दान, इण वाते लहिसिउ अपमान, आचारांगमांहि मति आणि, संवत्सरी दान तूं जाणि. १७ . पोरसिमांहि जिनवर वीर, वरिसइ सोवन सहसधीर, एक कोडि अड लख एतलू, वरसि दिवसि हुइ केतलूं. १८ त्रिणि सई तिम अट्यासी कोडि, लाख असी तिहां सरिसा जोडि, छठे अंगे मल्लि जिन वली, इण परि दान दिउं मनि रली.१९ परदेशी राउ सत्कार, रायपसेणी मांहि विचार, चित्र सारथि छे तास प्रधान, चिहुं पर्वी पोसह ऋषिदांन. २० पुनरपि सुणज्यो भगवइ अंगि, तुंगीया नयरी श्रावक रंगि, नितु दें दान सुपरि ते तिसी, एक जीभ परि बोलू किसी. २१ जिम अविरल जलहर जलधार, बहे अवारी तिम अनिवार, मनवंछित जाचक दिए अन्न, त्रिभुवनि ते श्रावक धन धन्न. २२ कल्पसूत्र सुणतां आणंद, ऋषभ नेमि जय पास जिणंद, वीर तणी परि संवत्सरी, दीधा मयगल मलपत तुरी. २३ धण कणि मणि मुक्ताफल बहू, आज लगे ते जाणे सहू, साते क्षेत्रे देवू दान, भत्तपयन्ना मांहि प्रधान. २४
१ दांन का निषेध केवल स्वामि भिखमनीने ही नहि किया परं सबसे पहिला तो लौंकाशाहने ही किया था तब ही तो पं. लावण्यसमय को इतने आगमों के प्रमाण देकर दान को सिद्ध करना पड़ा है।
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