________________
२१२
रे कुमती ! तुझ मनि संदेह, मई नव निचे प्रीछिओ तेह, दानि तु वाधे संसार, किम पामिजे मोक्ष द्वआर १ जाण जीव कुमतीने नटे, हाहा ए सहू साधुं घटे, तु कहु जे तीर्थंकर भया, देड दान शिवपुरि किम गया ? २६ ठालु घडु घणुं जल हलइ, द्रव्यहीण इतर झालफलई, पोतर पहिरणि नहि पोतीउं, वंछइ पट्टकूल धोतीउं. तिम नवि जाणे आगम मर्म, जाणे खरुं प्रकासउं धर्म, ए एतली न जाणे वात, दानिहं कर्म तणउ उपघात. दानिई जु घट पापि भराइ, तु तुम्हे भिक्षा मागु कांइ, वचन तणो हठ छे अति घणो, परमारथ प्रीछिउ तुम्ह तणो. २९. छेदग्रंथमाहि संग्रहिउ कल्पसूत्र सविशेषह कहिउ, दीवाली दिनि उत्सव सार, लिइ पोसहे तव राय अढार ३० भगवइ अंगे अमावस तणा, आठमि चऊदिसि पूनिमि घणा, तुंगीया नयरी श्रावक तेइ, पोसह लेता भाव धरेइ. ३१ नंदि सूत्र जोयो उत्साहि, वलि विशेषावश्यकमांहि, द्वार अछे अनुयोगह ठाम, चऊविह संघ तणां तिहां नाम. ३२
Jain Education International
२५.
For Private & Personal Use Only
२७
१ जैनयतियों और उपाश्रय के द्वेष के कारण लौंका शाहने सामायिक, पौसह, प्रतिक्रमणादि धर्मक्रियाओं से रोष करता हुआ एवं विरुद्ध करने के कारण पं. लावण्यसमयजीने सूत्रों के प्रमाण देकर पोसह आदि धर्मक्रियाओं की सिद्धि कर बतलाई हैं ।
२८.
www.jainelibrary.org