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प्रकरण पंचवीसवाँ
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क्या श्रीमाल, सब जातियों में फूट, कुसम्प और अशान्ति फैलाई । वह भी इतनी कि एक पिता के पुत्र होने पर भी वे दुश्मन की भाँति एक एक को हलका दिखाने में और नुकसान पहुँचाने में बहादुरी समझने लगे, और लौंकाशाह के संकुचित विचार, मलीन क्रियाएँ और मर्यादा के बाहिर की दया ने शुद्धि की मशीन को तो बिलकुल बन्द ही कर डाली । अर्थात् वि० सं० १५२५ तक तो श्रजैनों को जैन बनाने का इतिहास मिलता है । पर बाद में लोकाशाह के पूर्वोक्त श्राचरणों और ग्रहकलेश से किसी भी अजैन को जैन बनाने का इतिहास नहीं मिलता है । इस तरह लौंकाशाह ने जैन समाज में फूट, कुसम्प व अशान्ति पैदा कर नये जैन बनाने के दरवाजे को बन्द करने के अलावा कुछ भी महत्व का कार्य नहीं किया । विशेष में हम पिछले २४ प्रकरणों में विस्तृत रूप से लिख श्राए हैं जैसे कि:
( १ ) स्थानकमार्गियों की प्राचीन समय से मान्यता थी कि लौंकाशाह एक साधारण गृहस्थ और पुस्तक लिखने वाला लहीया था ।
( २ ) तपागच्छीय यति कान्तिविजय के नाम से दो पन्ने कल्पित बनाए वे स्था० मत से भी मिथ्या ठहरते हैं ।
( ३ ) लौंकाशाह के इतिहास के लिए स्थानकवासी समाज के पास प्रमाणों का अभाव ही है ।
( ४ ) लौंकाशाह के विषय जो कुछ प्रमाण मिलते हैं उनकी सूची ।
( ५ ) लौंकाशाह का समय विक्रम की पन्द्रहवीं शताब्दी के अन्तिम चरण से सोलहवीं शताब्दी का पूर्वार्द्ध है।
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