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लौकाशाह ने क्या किया ?
(६) लौकाशाह का जन्म स्थान लीबड़ी और वंश
श्रीमाली लोकाशाह और पुस्तक
(७) लोकाशाह का व्यवसाय नाणावटी ( कोड़ी, टकों की कोथली ले के बैठना) और पुस्तक लिखने का था।
(८) लौंकाशाह का ज्ञान-साधारण गुजराती भाषा का ज्ञान था।
(९) लौंकाशाह ने अपने लिए ३२ सूत्र तो क्या पर एक भी सूत्र नहीं लिखा था।
(१०) लौंकाशाह के समय-जैन समाज की परिस्थिति ऐसी नहीं थी कि जिसमें परिवर्तन की आवश्यकता हो ।
(११) लौकाशाह पर भस्म ग्रह का अन्तिम प्रभाव अवश्य पड़ा था।
(१२) लौंकाशाह को नया मत निकालने का कारण उसके खुद का अपमान ही था।
(१३) लौंकाशाह का कोई मुकर्रर सिद्धान्त नहीं था। वह अपमान के कारण गुस्से में आकर जैन साधु, जैनागम, सामायिक, पौसह, प्रतिक्रमण, प्रत्याख्यान, दान और देव पूजा का विरोध कर प्रत्येक कार्य में पाप-पाप-हिंसा-हिंसा और दया दया ही करता था, बाद में उनके अनुयायियों ने जैन-धर्म की कई एक क्रियायों को और ३२ सूत्रों को माने थे।
(१४) लौकाशाह और मूर्तिपूजा-मूर्तिपूजा विश्वव्यापी है । (१५) लौंकाशाह डोराडाल मुँहपर मुँहपत्ती नहीं बाँधता था।
(१६) लौकाशाह में किसी विषय की विद्वत्ता नहीं थी। वह बड़ा ही मताग्रही था।
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