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________________ प्रकरमा पच्चीसवां श्रीमान् लौकाशाह ने क्या किया ? संसार में मनुष्य दो प्रकार से प्रसिद्धि को पाता है, - एक तो अच्छे कार्य करने से, या जगत् का भला करने से, तथा दूसरा बुरा कार्य करने से अर्थात् जगत का अहित करने से। अब देखना यह है कि हमारे चरित्र नायक श्रीमान् लौकाशाह किस कोटि में से थे और उन्होंने दुनियां का भला किया या बुरा ? लौकाशाह की अधिक से अधिक पुकार शिथिलता को थी, परन्तु वास्तव में यह पुकार अपमान के कारण बुद्धि का विकार ही था। कारण उस समय केवल शिथिलाचार ही नहीं पर बहुत से धर्मधुरंधर जैनाचार्य उपविहारी भी विद्यमान थे। यत् किचित् शिथिलाचारी होगा तो भी लौकाशाह की इस मिथ्या पुकार से उनका थोड़ा भी सुधार नहीं हुआ । यदि शिथिलाचार का ही कारण समझा जाय तो फिर लौंकाशाह ने जैन साधु, जैनाऽऽगम, सामायिक, पौसह, प्रतिक्रमण, प्रत्याख्यान दान और देव पूजा को बुरा क्यों समझा और उसका विरोध क्यों किया था ? परन्तु श्रापका वह पक्ष भी निर्बल रहा, कारण आप द्वारा विरोध की हुई ये सब बातें पुनः सब को स्वीकार करनी पड़ी। लौकाशाह के समय जैन समाज का संगठन बल भी बड़ा मजबूत था । सामाजिक और धार्मिक डोर प्रायः श्रीपूज्यों के हाथ में थी और शुद्धि की मशीन द्वारा अजैनों को जैन भी बनाया जाता था । बस ! लौकाशाह ने सब से पहिला काम तो यह किया कि जैन संगठन के टुकड़े २ कर, क्या श्रोसवाल, क्या पोरवाल, Jain Education International For Private & Personal Use Only ___www.jainelibrary.org
SR No.003664
Book TitleShreeman Lonkashah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar Maharaj
PublisherShri Ratna Prabhakar Gyan Pushpmala Phalodhi
Publication Year1937
Total Pages416
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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