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________________ १८१ ८- व्याख्यान के अन्त में चन्दा करना । ९ - रात्रि जागरण करना । १०- रुपये पैसे रखना | ११-- फरमान, पटा, परवाना, १२ – उपासरों में देरासर और मूर्तियों का रखना । १३ – रात्रि में दीपक करवाना । १४ - छोटे छोटे बालकों को चेला बनाना । १५ -- मंत्र यंत्र करना | १६- निमित्त बताना | १७- - नगर प्रवेश की अगवानी कराना । १८ - सात क्षेत्र में धन निकलवाना 18 १९- पुस्तक द्रव्य से पुजवाना । २० -- संघ पूजा करवाना 18 २१- प्रतिष्ठा करवाना | २२- पर्युषण में पुस्तक महोत्सव २३ - सोने चांदी की ठवणी ( पुस्तकाधार) रखना | २४ -- पगवन्दन करते वक्त वस्त्र पर चलना । जैन साधुओं का भ० व्य० व्याख्यान के अन्त में चंदा करना । Jain Education International रात्रि जागरण करना । रुपये पैसे रखना । फरमान, पटा, परवाना रखना। उपासरों में देरासर और मूर्त्तियों का रखना । रात्रि में दीपक करवाना | छोटे छोटे बालकों को चेला बनाना । मंत्र यंत्र करना । निमित्त बताना । नगर प्रवेश की अगवानी कराना । सातक्षेत्र में धन निकलवाना | पुस्तक द्रव्य से पुजवाना । संघ पूजा करवाना | प्रतिष्ठा करवाना | पर्युषण में पुस्तक महोत्सव | सोने चांदी की ठवणी (पुस्तकाधार ) रखना । पगवन्दन करते वक्त वस्त्र पर चलना । * इन कार्यों का साधु उपदेश दे की ओट में स्वस्वार्थ साधन करना ज़रूर बुरा है । सकते हैं पर इसमें इन कार्यों For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003664
Book TitleShreeman Lonkashah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar Maharaj
PublisherShri Ratna Prabhakar Gyan Pushpmala Phalodhi
Publication Year1937
Total Pages416
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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