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________________ प्रकरण बीसवाँ १५४ बा० मो० शाह ने श्वेताम्बर जैनियों को चैत्यवासी या देरावासी के लिए ऐसा लिखा हो तो वह उनकी ईर्षा भाव का ही फल है कि वे० संघ को देरावासी लिखकर चैत्यवासियों की कोटि में स्थापित कर घृणित बनवाना । श्रस्तु आगे देखिये X X x परन्तु इस समय ( वि० सं० १५३१ में ) Marशाह ने अपने सम्पादित ज्ञान को चारों ओर फैलाने के लिए एक खास योजना नहीं की थी X x x 1 ऐतिहा० नोंध पृष्ठ ७४ वा० मो० शाह को यह लिखते समय जरा तो विचार करना था कि वि० सं० १५३१ तक तो लोकाशाह ने कुछ योजना ही नहीं की थी । और उस समय आप बिल्कुल बूढ़े तथा अपंग भी हो गए थे, और वि० सं० १५३२ में आपका देहान्त हो गया, फिर उस वृद्ध और अपङ्गाऽवस्था में बिना तार डाक श्रादि के एक ही वर्ष में भारत के चारों ओर लौंकाशाह ने अपने धर्म को कैसे फैला दिया था ? क्या शाह की मान्यता का भारत, लींबड़ी या अहमदाबाद की एकोध गली या मुहल्ला तो नहीं था ? कि उसमें चारों ओर लौंकाशाह ने सरवर ही अपने उपदेश की Jain Education International * स्था० मतानुसार छौंकाशाह का धर्मप्राण तथा देहान्त का समय १ वर्ष के बीच का है पर यह कोई खास प्रमाण नहीं कि यह वर्ष बराबर १२ मास ही का था । क्योंकि इन्होंने तो मात्र संवत् लिखा है मास तिथि नहीं । इस हिसाब से तो सं० १५३१ चैत्र कृ० ३० और सं० १५३२ चैत्र शु० १ ये एक दिन की अवधि में हैं परन्तु केवल संवत् से वर्ष के द्योतक जान पड़ते हैं अतः विचारणीय है । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003664
Book TitleShreeman Lonkashah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar Maharaj
PublisherShri Ratna Prabhakar Gyan Pushpmala Phalodhi
Publication Year1937
Total Pages416
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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