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उन्नति की डींगें मारना ही आता है वे क्या नहीं कर सकते हैं । नमूनार्थ देखिये:
श्रीमान् वा० मो० शाह
to
० अनु० की संख्या
X X X एक पुरुष थोड़े ही समय में हुआ, जिसने रेल तार डाक आदि के बिना ही भारत के एक भाग से दूसरे भाग तक जैन धर्म का उपदेश फैला दिया x × । ऐति नौंध पृष्ट ६५
•
और आगे चल कर आप यों लिखते हैं कि :
"और ४०० वर्ष के भीतर ही भीतर चैत्यवासियों में से ५००००० पांच लाख से ज्यादा मनुष्यों को अपने में मिला लिया ।"
ऐतिहा० नोंध पृष्ट ७७ ।
जब ४०० वर्षों में पांच लाख मनुष्यों को अपने में मिला लिया माना जाय तब यह लिखना तो बिलकुल मिथ्या ही सिद्ध हुआ कि लौंकाशाह अपनी जिन्दगी में बिना तार डाक भारत के पूर्व से पश्चिम और उत्तर से दक्षिण तक धर्म प्रचार किया ।
एक ओर तो आप लिखते हैं कि बिना रेल तारादि के अपना धर्म भारत के एक भाग से दूसरे भाग तक फैला दिया, और दूसरी ओर लिखते हैं कि ४०० वर्षों में पांच लाख ( वास्तव में दो लाख ) चैत्यवासियों को अपने अन्दर मिला लिया परन्तु विक्रम की १३ वीं शताब्दि के बाद कोई चैत्यवासी था ही नहीं तो फिर वा० मो० शाह ने ५ लाख चैत्यवासी कहाँ से निकाले ? हाँ !
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