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________________ १४७ क्या० लौं० अ० किया था ? x x x वि० सं० १५३२ में लौंकाशाह का देहान्त हुआ × × × धर्मप्राण लौका ० लेख जैन प्र० ता० ८-४-३६ पृष्ट ४७५ । X X יין X श्रीमान् वा० मो० शाह X X x परन्तु इस समय ( वि० सं० १५३१ ) में लाशाह ने स्वसंपादित ज्ञान को चारों ओर प्रसार करने की योजना तक भी नहीं की थी x × × । ऐति० नोंध पृष्ट ७४ । Jain Education International वि० सं० १५३१ तक लौंकाशाह का भारत भ्रमण करना तो दूर रहा उनका वाचिक सन्देश भी कहीं नहीं पहुँचा था बाद में वा० मो० शाह की लेखनी द्वारा लोंकाशाह स्वयं बोल रहे हैं कि "इस समय तो मैं बिलकुल बूढ़ा और अपङ्ग हूँ", और फिर वि० सं० १५३२ के नजदीक समय में ही लोकाशाह का नश्वर शरीर इस संसार से विदा हो चुका था । अब समझ में नहीं आता कि लौकाशाह ने फिर भारत भ्रमण कैसे किया था ? स्वामी मणिलालजी अपनी "प्रभुवीर पटावली" के पृष्ठ १७८ में लिखते हैं कि "लोकाशाह, यति दीक्षा लेने के बाद घूमते २ एक दिन जयपुर (राजपूताना ) पहुँचे वहाँ आपका जहर के प्रयोग से अकस्मात देहान्त हो गया । इत्यादि” परन्तु जब लौंकाशाह का दीक्षा लेना भी प्रमाणों से कल्पित ठहरता है तब, दीक्षोपरान्त धर्म प्रचारार्थ लौंकाशाह का परि Carpets For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003664
Book TitleShreeman Lonkashah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar Maharaj
PublisherShri Ratna Prabhakar Gyan Pushpmala Phalodhi
Publication Year1937
Total Pages416
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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