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________________ प्रकरण उन्नीसवां क्या लोकाशाह ने कहीं भ्रमण किया था १ लौं काशाह के जीवनवृत्त पर से • काशाह के जीवनवृत्त पर से इतना तो स्पष्ट समझा जा सकता है कि लौकाशाह ने अपने हृदय की आवाज सब से पहिले अहमदाबाद में व्यक्त की थी । परन्तु जब वहां आपके उस पैगम्बरी हुक्म को किसी ने सुना नहीं, किन्तु श्रीसंघ ने उल्टा आपका तिरस्कार कर आपको मकान से बाहिर कर दिया, तब आप वहाँ से अपने जन्म स्थान लींबड़ी को गए, और वहाँ आपके सम्बन्धी श्रीमान् लखमसी भाई जो राजकारभारी थे उनकी सहायता से लींबड़ी में आपने अपने परिष्कृत विचारों का प्रचार किया अर्थात् अपने नये मत की नींव डाली। जिस समय आपने अपने नये मत का शिलान्यास किया, उस समय आप श्रतिवृद्ध और अपङ्ग थे । नये मत को स्थापित करने के कुछ काल बाद ही आपका वहीं लींबड़ी में देहान्त होगया । इस हालत में आपका परिभ्रमण करना पंगु द्वारा हिमालय लाँघना ही है । हमारी इस बात से हमारे स्थानकमार्गी साधु एवं विद्वान् भी सहमत हैं। देखिये:— श्रीमान् संतबालजी — “वि० सं० १५३१ में लौंकाशाह धर्म प्राण हुआ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003664
Book TitleShreeman Lonkashah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar Maharaj
PublisherShri Ratna Prabhakar Gyan Pushpmala Phalodhi
Publication Year1937
Total Pages416
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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