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हैं । जिन्हें स्वस्थ, प्रसन्न और निरोगी रहना हो उन्हें चाहिए कि वे पहले अपने मन को नियंत्रित संयमित करें । मनोवैज्ञानिक भी निंदा, चुगली, इर्ष्या, द्वेष, क्रोध, आवेश आदि के प्रसंगों से बचने की सलाह देते हैं । मन के भटकाव को रोकने की बात करते हैं। अनेकों झगड़ें, झंझट और वैमनस्य से भी बचने को कहते हैं । बचने का एक ही श्रेष्ठ उपाय है विषयलोलुपता का त्याग ! विषयलोलुपी प्रेत बना :
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विषयलोलुपता की वजह से एक साधु-संन्यासी कैसे प्रेत बना, इसकी एक ऐतिहासिक घटना बताता हूँ । बिहार राज्य में हेमंतपुर नाम की कभी बहुत शानदार रियासत थी । अब तो उसके ध्वंसावशेष ही रह गये हैं । इन खंडहरों में से कभी कभी एक क्षीण कायावाले साधु की मूर्ति आसमान में उड़ती दिखायी पड़ती है । और खंडहर के भीतर प्रवेश करने पर यह भी प्रतीत होता है कि इस में कोई आदमी रहता है। पानी का भरा घड़ा, बुहारी, मटका आदि वस्तुएं न जाने किसकी रखी हुई हैं !
कहते हैं कि वहाँ के राजा साहब जब सिंहासनारूढ़ थें तब उनकी प्रेरणा से, उस साधु ने तांबे से सोना बनाने का प्रयोग किया था। पूरा होने से पूर्व ही वह गलती से कढ़ाई में गिरकर प्राण गवाँ बैठा था । साधु की आत्मा को इस असफलता पर बड़ा क्लेश हुआ। वह अभी तक प्रेतरूप में उस खंडहर में घुमता देखा जाता है !
विषयलोलुपी मनुष्य कर्तव्यनिष्ठ नहीं रह सकता :
विषयलोलुपता के कारण कामना, लालसा और वासना की संकीर्ण परिधि में ही सामान्यतया मनुष्य- मन का चिंतन घूमता रहता है । ज्ञानी पुरुषों ने इसे ही पुत्रैषणा, वित्तैषणा और लोकेषणा कहकर इससे उबरने को कहा है । आत्मोत्कर्ष के मार्ग में यही प्रधान बाधायें हैं । ईन एषणाओं के कारण, विषयलोलुपता के कारण ही लोग राग-द्वेष, कलह - कटुता वगैरह में जकड़े रहते हैं । ऐसे लोग विशिष्ट कर्तव्यों का पालन नहीं कर सकते हैं ।
इस विषय में एक ऐतिहासिक प्रसंग बताता हूँ : सन् १८५७ के स्वतंत्रतासंग्राम की एक महत्वपूर्ण घटना 'तात्याटोपे के जीवन से संबंधित है ।
'अजीजान' नाम की एक नर्तकी सेनापति तात्याटोपे की ओर आसक्त हो गयी। उसने तात्या का मन जीतने के लिए आकर्षणों का जाल बिछा दिया । वे उसके
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शान्त सुधारस : भाग १
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