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की जननी होती है । किसी भी विषय की इच्छा, अभिलाषा, कामना... पैदा होती है... कि आर्तध्यान शुरू हो जाता है । और वह विषय पाने के लिए हिंसा के, मृषा के, चोरी के विचार चलते रहते हैं कि रौद्रध्यान शुरू हो जाता है ।
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इस विषयलोलुपता के कारण ही मनुष्य के जीवन में संघर्ष बढ़ता है। मनुष्य के जीवन में मानसिक तनाव की वृद्धि हो रही है । इसका प्रभाव, मस्तिष्क के माध्यम से समग्र शरीर पर पड़ता है । मनोभावों का उत्तेजनात्मक प्रभाव हृदयगति, रक्तपात, रक्तनलिकाओं के व्यास में परिवर्तन, रक्त के रासायनिक परिवर्तन के रुप में होता है । जिसकी परिणति 'हार्ट एटेक', 'कारडिएक एरिथमिया', 'इसेन्शियल हाइपरटेंशन', 'एंजाइना पेक्टोरिस' तथा 'माइग्रेन' के रूप में होती है ।
एक व्यापारी भावनात्मक उतार-चढ़ाव के साथ ही चिंतित रहता था । कुछ समय बाद उसे उच्च रक्तचाप की बीमारी हो गई । मनोवैज्ञानिकों ने उसे अपने दृष्टिकोण को बदलने तथा अपने को आध्यात्मिक उत्थान के रचनात्मक प्रयास मे लगने की सलाह दी । देखा गया कि कुछ दिनों के बाद ही उसे उच्च रक्तचाप से मुक्ति मिल गयी ।
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U.S.A. में प्रतिवर्ष आधे से ज्यादा मृत्यु हृदयरोगों से होती है । चिकित्सकों के अनुसार ४५ से ६५ वर्ष की उम्र में २५ प्रतिशत मृत्यु 'सायकोसोमेटिक कोरोनरी आर्टरी' रोगों के कारण होती हैं ।
कुछ विदेशी डॉक्टरों ने अपनी खोजों में पाया है कि भावनात्मक संवेगों का रक्त के जमाव की गति से सीधा संबंध है । 'ब्लड़ बेंक' में रक्तदाताओं को तीन श्रेणियों में बाँटा गया। जो शान्त मनस्थिति के थे उनके रक्त जमने की दर ८ से १२ मिनट थी, जो भयभीत थे उनके रक्त के जमाव का समय ४ से ५ मिनट था तथा जो अत्याधिक चिंतित तथा भयभीत थे, उनका १ से ३ मिनट
था ।
हृदयाघात में मृत्यु का कारण खून का थक्का जम जाना होता है । जो एक थ्रॉम्बस या इम्बालिस्म के रूप में होता है । थक्का बनने की प्रक्रिया रक्त के रासायनिक परिवर्तन पर निर्भर करती है । जिस पर मानसिक तनाव का सीधा प्रभाव होता है। अच्छी तरह समझना कि यह मानसिक तनाव आर्तध्यान अथवा रौद्रध्यान से उत्पन्न होता है । विषयलोलुपी जीवों को मानसिक तनाव रहेगा ही !
मनोविकारों से रहित मन की स्थिति शरीर को निरोगी रखने में महत्वपूर्ण भूमिका है । इस तथ्य को विश्व के मूर्धन्य चिकित्साशास्त्री भी अनुभव कर चुके
प्रस्तावना
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