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जीवन में सन्मार्ग पाना, सन्मार्ग पर श्रद्धा होना और उस सन्मार्ग पर चलना, मोहान्ध मनुष्य के लिए दुष्कर होता है । वह आत्मबोध पा नहीं सकता । एक डाकू प्रशान्त मनुष्य बनता है :
जब तक जीवात्मा मोहाक्रान्त होता है तब तक उसके मन में समत्व नहीं आता है । आत्मा में तो सहज भाव से समता पड़ी हुई है, परंतु मोहदशा ने उसको दबा कर रख दी है । यदि आपको वह समता पानी है, तो मोहदशा को मिटाना होगा। इन बारह भावनाओं के अभ्यास से मोहदशा मिट सकती है । अथवा इन भावनाओं को हृदयस्थ करनेवाले किसी महात्मा के परिचय से मोहदशा दूर हो सकती है। __ अभी-अभी मैंने ऐसी ही एक सत्य घटना पढ़ी है | आपको सुनाता हूँ वह रोमांचक घटना । यह घटना एक डाकू के जीवन की है । घटना एक जंगल में घटी है ! आप तो सज्जन लोग हैं न ? जरा तुलना करना इस घटना को सुनकर !
गुजरात-सौराष्ट्र के सीमा प्रदेश पर बजाना स्टेट था। उस स्टेट के २४ गाँव थे । उसमें 'पीपली' नाम का गाँव है । उस समय की यह बात है जब बजाना का नवाब जीवनखान था। नवाब जत जाति का था। जत जाति मुसलमान होती है । जत कौम बहादुर और लड़ायक होती थी। पीपली गाँव में माधोजी नाम का जत मुसलमान था । माधोजी की पाँच हाथ की ऊँचाई थी । बलिष्ठ शरीर था। चोरी करना, मारामारी करना, लड़ाई-झगड़ा परता... रसके काप थे । व्यभिचारी था, मांसाहारी था । ४०/४५ वर्ष की उम्र होगी । बजाना स्टेट के २४ गाँवों में वह कुख्यात डाकू था। दूर-दूर जाकर वह चोरी कर, प्रभात में वह पीपली आ जाता । वैसे वह समृद्ध था। अच्छा पक्का घर था । गायें थी, भैंसे थी और माणकी नामकी लक्षणवंती घोड़ी थी। उसकी पत्नी भी खानदान घराने की थी । माधोजी के मुँह में कभी रामनाम नहीं था, रहेमान का नाम भी नहीं था।
पीपली और बजाना के बीच ६ मील का अन्तर है । बीच में एक तालाब है । वह घंटीयाली तलावडी के नाम से प्रसिद्ध है !
उस तालाब के आसपास बबूल के वृक्ष थे । वृक्षों की घटा थी। उस जगह एक दिन शैव संप्रदाय के दिगंबर बाबाओं ने मुकाम किया। सौ-सवासौ बाबालोग होंगे । शरीर पर भस्म और गले में तुलसी की माला । ललाट में तिलक और हाथ में बड़ा चिमटा । चिमटा ही उनका शस्त्र ! बीच में अखंड अग्नि । साथ प्रस्तावना
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