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________________ अकेले ही पड़ता है। __तरह-तरह के ममत्वों के बोझ से दबा हुआ प्राणी, परिग्रह का बोझ पढ़ने से, बहुत ज्यादा बोझ बढ़ने से समुद्र में डूब जाते जहाज की भाँति नीचे गहराई में पहुँच जाता है। शराब के नशे में चूर हुए आदमी की तरह आत्मा परभाव के पाश में पतित होता है, टकराता है, लोटता है और शून्यमनस्क होकर भटकता है । वस्तु के वास्तविक स्वस्प को जानें : ___ हर वस्तु के दो रूप होते हैं - वास्तविक और अवास्तविक । वस्तु के मूलभूत द्रव्य को वास्तविक कहते हैं, जिसका कभी नाश नहीं होता है । दूसरा रूप होता है अवास्तविक । उसको कहते हैं पर्याय ! हर द्रव्य के अनंत पर्याय होते हैं । पर्याय विनाशी होते हैं ! पर्याय परिवर्तनशील होते हैं । यह गंभीर तत्त्वज्ञान है द्रव्य और पर्याय का । इस तत्त्वज्ञान की ओर ग्रंथकार निर्देश करते हुए कहते हैं : सोचें, इस विश्व में अपना क्या है ? यह दिव्य विचार जिसके चित्त में जाग्रत हो जाता है, उसको दुःख-दुरित का स्पर्श भी नहीं हो सकता है ! चूंकि उसने समझ लिया होता है कि मैं विशुद्ध और अविनाशी आत्मा हूँ और ज्ञानादि गुण ही मेरे है, इसके अलावा कुछ भी मेरा नहीं है । चर्मदृष्टि से दिखनेवाला एक भी पर्याय मेरा नहीं है । पाँच इन्द्रियाँ और उनके विषय मेरे नहीं है । जो मेरा नहीं है वह बने या बिगड़े, इससे मुझे कोई मतलब नहीं है ! अकेला आया हूँ, अकेला जाऊँगा : इस अनादि संसार में कर्मवश जीव का एकत्व' कैसा है, इसका बहुत ही हृदयस्पर्शी वर्णन कार्तिकेयानुप्रेक्षा में किया है । एकत्व की अनुप्रेक्षा करते हुए तीन श्लोकों में उन्होंने कहा है - जीव अकेला ही गर्भ में उत्पन्न होता है । गर्भ में शरीर बनाता है । वही अकेला जनमता है, बाल होता है, युवान होता है और वृद्ध होता है। ___ अकेला ही रोग-शोक भोगता है । अकेला ही संताप-वेदना सहता है और अकेला ही मरता है ! अकेला ही नरक के दुःख सहन करता है । नरक में परवशता से दुःख सहन करने ही पड़ते हैं । कोई बचा सकता नहीं है । श्रीकृष्ण और बलराम : जैन महाभारत में बताया गया है कि श्रीकृष्ण की मृत्यु के बाद बलराम विरक्त हो जाते हैं । वे श्रमण बन जाते हैं । सौ वर्ष तक वे संयमधर्म का पालन करते एकत्व-भावना २६५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003661
Book TitleShant Sudharas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherVishvakalyan Prakashan Trust Mehsana
Publication Year
Total Pages302
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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