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करती थी कि इस बात की जानकारी कमांडर को नहीं हो । परंतु ऐसी बातें कब तक गुप्त रह सकती हैं ? आखिर एक दिन कमांडर को मालुम हो गया। सिल्विया को पूछा । सिल्विया ने आहुजा के साथ का प्रणय-संबंध का इकरार किया । बाद में तुरंत कमांडर सीधे जहाज पर गये। सर्विस रिवोल्वर और ६ कारतूस लेकर वे वहाँ से निकल गये । सीधे वे आहुजा के घर पर गये । आहुजा स्नान कर बाहर आया ही था कि नाणावटी ने उस पर रिवोल्वर चला दी। आहुजा जमीन पर गिर पड़ा। उसके मृतदेह पर थूककर नाणावटी बोला : दुश्मन जो काम नहीं करे, वो काम दोस्त ने किया । वे वहाँ से सीधे पोलीस स्टेशन चले गये और कह दिया - 'मैंने प्रेम आहुजा की हत्या की है ।'
नाणावटी को दोषित सिद्ध किया गया था और उसको आजीवन कारावास की सजा हुई थी । बंबई में उन दिनों में यह केस की चर्चा घर-घर में थी। सब लोग दूसरे पुरुष को अपने घर में प्रवेश देने में हिचकिचाते होंगे ! जीवन में परद्रव्य का प्रवेश - अनर्थ का मूल :
परभावों से, परद्रव्यों से ममत्व करने का परिणाम तो इससे भी ज्यादा भयंकर आता है । वहाँ तो प्रेम आहुजा की हत्या हो गई, एक मनुष्य-जीवन से हाथ धोने पड़े, परंतु परद्रव्यों के साथ किये हुए ममत्व से तो हजारों जन्म तक दुःख भोगने पड़ते हैं । इसलिए परद्रव्यों के ममत्व से जो सख की कल्पना होती है. उस कल्पना का त्याग कर दो। अपने मन की साक्षी से, देव-गुरु की साक्षी से निर्णय कर लो कि मुझे अब मेरे आत्मभाव में ही रहना है । परद्रव्यों से, परभावों से ममत्व नहीं बाँधना हे । जो ममत्व बंध गया है, उसको तोड़ना है। __ परद्रव्यों का ममत्व, परस्त्री के साथ किये हुए ममत्व के समान है, जो सचमुच दुःखदायी होता है । रामकालीन रावण से लगा कर वर्तमानकालीन रावणों तक देख लो ! वैसे परद्रव्यों से ममत्व करनेवालों की दर्दनाक पीड़ाओं का इतिहास असंख्य वर्षों का पढ़ लो ! शास्त्रों को पढ़ लो । * मैं अकेली शद्धस्वरूपी आत्मा हूँ। * मैं ज्ञानमय, सुखमय, आनन्दमय आत्मा हूँ | * आत्मा में ही संतुष्ट रहना है ।
आत्मा के अलावा किसी भी बात की अपेक्षा नहीं है । एकत्व का ऐसा निर्णय कर, प्रतिदिन एकत्व-भावना करनी है । आज बस, इतना ही।
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शान्त सुधारस : भाग १
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