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के मृतदेह को घर में नहीं रखता, निकाल देता है, जला देता है ! वैसे पतिपत्नी का रिश्ता हो, भाई-भाई का रिश्ता हो, मित्र-मित्र का रिश्ता है...जब तक जीवन होता है, तब तक ही स्नेह, प्यार... संबंध बना रहता है, मृत्यु के साथ सब कुछ समाप्त हो जाता है। मृत्यु का शोक अल्पकालीन :
प्रियजन की मृत्यु के बाद, स्वजन-विरह की व्यथा-वेदना प्रायः अल्पकाल रहती है । बलदेव-वासुदेव का प्रेम अपवादरूप समझना चाहिए । इनके अलावा संसार में सर्वत्र मृत्यु का शोक अल्पकालीन ही होता है । प्रियजन की मृत्यु के बाद, कुछ महीने व्यतीत होने पर स्वजन-लोग मस्ती से खाते-पीते हैं, शृंगार सजते हैं और रंगराग में डूब जाते हैं । जो व्यक्ति मर जाता है, सब संपत्तिवैभव छोड़कर मर जाता है, उस संपत्ति का, उस वैभव का उपयोग उसके स्वजन वगैरह मजे से करते रहते हैं । दान-पुण्य बहुत कम करते हैं, भोगोपभोग ही ज्यादा करते हैं। शुभाशुभ कर्म ही साथ चलते हैं : __ मृत्यु के बाद स्नेही-स्वजन-परिजन कोई भी साथ नहीं चलते, चलते हैं मात्र जीव के किये हुए शुभाशुभ कर्म ! इस जीवन में जो भी अच्छे-बुरे कर्म बाँधे होंगे, वे कर्म आत्मा के साथ परलोक में चलते हैं ! __ शुभ कर्म परलोक में साथ चलते हैं, तो परलोक में जीव को सुख के साधन मिलते हैं । अशुभ कर्म परलोक में साथ चलते हैं, तो परलोक में जीव को दुःख के निमित्त मिलते हैं । पुण्य से सुख और पापों से दुःख मिलते हैं ।
मनिराज गर्दभाली ने संजय राजा को ये जिनवचन सुनाये और राजा का मन संसार के प्रति विरक्त बना । राजा ने संसार का त्याग किया, वे श्रमण बने । आत्मा को कर्मों से मुक्त करने का प्रबल पुरुषार्थ किया और वे सिद्ध, बुद्ध, मुक्त बन गये ! संसार-परिभ्रमण का अंत आ गया । निमित्त और उपादान :
जिनवचन निमित्त हैं । वे ही जिनवचन हमें मिले हैं, जो जिनवचन राजा संजय को मिले थे । वे जिनवचनों का श्रेष्ठ निमित्त पाकर भवसागर को पार कर गये । हम अभी भवसागर में भटक रहे हैं । ऐसा क्यों हो रहा है ? मन में प्रश्न उठता है न ? ज्ञानी पुरुषों ने इस प्रश्न का समाधान दिया है । निमित्त कारण | २३२
शान्त सुधारस : भाग १
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