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महाकाल के अनंत प्रवाह में यह कहानी विलीन हो गई, परंतु अनन्त ज्ञान के आलोक में जीवंत रहती है सभी कहानियाँ । संसार के सभी संबंधों की, सभी रिश्तों की निःसारता...असारता बताती रहती हैं ऐसी कहानियाँ । ज्ञानी पुरुष, वीतराग परमात्मा संसार के सारे रिश्तों को अनित्य, निःसार और फालतू बताते हैं । रिश्तों के कारण राग-द्वेष नहीं करने का उपदेश देते हैं । संसार में पग-पग पर परेशानी-पराभव :
तनिक शांति से सोचना आवश्यक है । 'प्रतिपदं नवनवैरनुभवः परिभवैरसकृदुपगूढ रे...' कदम-कदम पर तुझे इस संसार के नये-नये हालातों की परेशानी नहीं उठानी पड़ती क्या ? पग-पग पर तेरा पराभव नहीं होता क्या ? अन्तरायकर्म के उदय से
– किसी को रहने को घर नहीं मिलता है, फुटपाथ पर पड़ा रहना पड़ता है।
- किसी को अति जीर्ण, छोटे और साँप, चूहे आदि के बिलवाले घर में रहना पड़ता है ।
- किसी को हिंसक, अभक्ष्य खानेवाले, कुकर्मी लोगों के संग रहना पड़ता है । - किसी को दुष्ट, व्यसनी, दुराचारी, महापापी लोगों से पल्ला पड़ता है ।
ऐसे लोगों को पग-पग पर परेशानी होती रहती है न ? पराभव होता रहता है न ? वैसे जिसको अनेक पलियाँ होती हैं उसके घर में प्रतिदिन झगड़े होते रहते हैं । किसी को अति दुष्ट, व्यभिचारिणी, अतिक्लेश करनेवाली, महारोगी
औरत होती है तो महा दुःखी होता है । * कोई पुरुष इसलिए परेशान होता है, क्योंकि उसकी सुशील और प्रिय पत्नी
की अचानक मृत्यु हो जाती है । * किसी पुरुष को तब बड़ी परेशानी होती है, जब उसकी पत्नी वृद्धावस्था में
अथवा निर्धन अवस्था में छोटे-छोटे बच्चों को छोड़कर मर जाती है । * कुछ पुरुष शादी के बाद तूर्त ही मर जाते हैं, इससे उसकी पत्नी को दीर्घकाल
तक परेशानी-पराभव भोगना पड़ता है । * माता-पिता की वृद्धावस्था में, आधारभूत पुत्र अचानक मर जाता है । * किसी को पुत्र तो होते हैं, परंतु चोर होते हैं, जुआरी होते हैं, शराबी होते हैं,
उन माता-पिता को परेशानियों की सीमा नहीं रहती है । * एक तो निर्धनता का बड़ा दुःख होता है, दूसरी ओर अनेक पुत्रियाँ होती हैं, | २१८
शान्त सधारस : भाग १
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