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• तलवार की धार जैसे असिपत्र के वन में चलाते हैं, • हाथ, पैर, कान, आँख आदि अंग-उपांगों को काट डालते हैं ।
इतना सारा कष्ट होने पर भी नारकी के जीव मरते नहीं है ! न वे आत्महत्या कर मर सकते हैं । जब उन जीवों का आयुष्य-कर्म समाप्त होता है, तभी वे मरते हैं।
हमारी आत्मा ने भी नरक में इस प्रकार के कष्ट सहे हैं - कल्पना करना। अपने आपको नरक के जीव के रूप में देखना और अतिशय क्रूर...निर्दय
ऐसे परमाधामी देव कष्ट दे रहे हैं, मार रहे हैं - कल्पना से देखना ! ... आज बस, इतना ही।
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शान्त सुधारस : भाग १
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