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________________ (६) वहाँ की गंध, सड़े हुए पशु-कलेवरों की दुर्गंध से भी ज्यादा अशुभ होती (७) वहाँ का रस, नीम पैड़ वगैरह के रस से भी ज्यादा कड़वा होता है । (८) वहाँ का स्पर्श, अग्नि के और बिच्छू के स्पर्श से भी ज्यादा तीव्र होता है। (९) वहाँ का शब्द, आवाज, सतत पीडाग्रस्त जीवों के करुण कल्पांत जैसा होता है । सुनने मात्र से दुःखदायी होता है । (१०) परिणाम भी अति व्यथा करनेवाला होता है । दूसरे प्रकार की भी १० वेदनाएँ वहाँ होती हैं, वे भी जान लो । (१) पोष महीना हो, रात्रि में हिमवर्षा होती हो, प्रचंड वायु बहता हो, हिमालय जैसा प्रदेश हो, वस्त्ररहित मनुष्य हो...उसको जैसा दुःख होता हो, उससे अनन्त गुना ज्यादा दुःख नारकी के जीवों को होता है । (२) चैत्र-वैशाख महीना हो, मध्याहन का समय हो, सूर्य सिर पर तपता हो, चारों दिशाओं में अग्निज्वालाएँ फैली हो, ऐसी स्थिति में जैसे कोई पित्तरोगी मनुष्य उष्णता की घोर वेदना अनुभव करें, उससे अनन्त गुना अधिक वेदना नारकी के जीवों को होती है। (३) नारकी के जीवों की भूख-क्षुधा कभी शान्त नहीं होती है । ढाई द्वीप का समग्र धान्य खा जाये तो भी उन जीवों की क्षुधा शान्त नहीं होती। (४) पानी की प्यास भी कभी नहीं बुझती । सभी समुद, सरोवर और नदियों का पानी पीने पर भी वे प्यासे रहते हैं । (५) नारकी के जीव शरीर को खुजलाते रहते हैं । छुरी से खुजलाने पर भी उनकी खुजली मिटती नहीं है । (६) नारकी के जीव सदैव परवश होते हैं। (७) वहाँ के जीवों के शरीर सदैव ज्वराक्रान्त रहते हैं । मनुष्य को अधिक से अधिक जितनी डीग्री का ज्वर होता है, उससे अनन्त गुना ज्वर नारकी के जीवों को होता है । (८) नारकी के जीवों को सदैव दाहज्वर जलाता रहता है । (९) उन जीवों का अवधिज्ञान अथवा विभंगज्ञान होता है, इससे वे अपने आनेवाले दुःखों को जानते हैं...इससे सतत भयाकुल रहते हैं । वैसे उनको परमाधामी देवों का भय और दूसरे नारकों का भय सताता रहता है । | २०६ शान्त सुधारस : भाग १ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003661
Book TitleShant Sudharas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherVishvakalyan Prakashan Trust Mehsana
Publication Year
Total Pages302
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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