SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 173
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ उनकी आत्मा को जगानी चाहिए। सिद्धार्थ-देव मनुष्यरूप धरकर पृथ्वी पर आता है। अनेक उपाय कर बलराम को प्रतिबोध देता है । बलदेव का व्यामोह दूर होता है । सिद्धार्थ-देव अपना मूलरूप - देवरूप प्रगट करता है, अपना परिचय देता है । उसने कहा : मैं आपका सारथि सिद्धार्थ हूँ । दीक्षा लेकर, उसका पालन कर, मैं देव हुआ हूँ। आपने मेरे से वचन लिया था, उस वचन का पालन करने यहाँ आया हूँ। आपको प्रतिबोध देने का कर्तव्य मैंने निभाया है । हे पूज्य, भगवान् नेमनाथ ने कहा था कि जराकुमार से कृष्ण की मृत्यु होगी, वैसे ही हुआ है । सर्वज्ञवचन कभी भी मिथ्या नहीं होता है । श्रीकृष्ण ने जराकुमार को अपना कौस्तुभरत्न देकर पांडवों के पास भेजा है। बलराम ने देव को कहा : सिद्धार्थ, तुमने यहाँ आकर मुझे बोध दिया, बहुत अच्छा किया। परंतु भ्राता की मृत्यु से मैं अत्यंत व्यथित हूँ। अब मैं क्या करूँ ? मुझे मार्ग बताओ। सिद्धार्थदेव ने कहा : 'आप भगवान नेमिनाथ के विवेकी भ्राता हैं । आपके लिए अब चारित्रधर्म ही शरणभूत है । बलराम ने कहा : 'अच्छी बात है । संसार के प्रति मेरा मन विरक्त बना ही है । भ्राता के बिना संसार में रहना, मेरे लिए असंभव है । बलराम ने सिंधु और सागर के संगम पर जाकर, श्रीकृष्ण के देह का अग्निसंस्कार कर दिया । उस समय भगवान नेमिनाथ ने बलराम के चारित्र के भाव देखकर, एक विद्याधर मुनिवर को आकाशमार्ग से वहाँ भेजा । बलराम ने उस मुनिराज के पास दीक्षा ले ली । श्री जिनधर्मः शरणम् । शुचितरचरण-स्मरणम् । बलराम मुनि ने श्रीजिनधर्म की शरण ले ली और पवित्र चारित्रधर्म का पालन करने लगे। अनाथता-अशरणता और अनाथीमुनि : अब मैं इसी संदर्भ में अनाथीमुनि का वृत्तांत सुनाऊँगा, जो उत्तराध्यन-सूत्र में मिलता है और उत्तराध्ययन-सूत्र तो भगवान महावीर स्वामी की अंतिम देशना थी । यानी अनाथीमुनि की कहानी स्वयं भगवान महावीर ने सुनाई हुई है । १५७ अशरण भावना Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003661
Book TitleShant Sudharas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherVishvakalyan Prakashan Trust Mehsana
Publication Year
Total Pages302
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy