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मुखगतान् खादतस्तस्य करतलगतैः
न कथमुपलप्स्यतेऽस्माभिरन्तः ॥ ८ ॥
आश्चर्य ! स्थावर जंगम जगत का सदैव भक्षण करता हुआ काल कदापि तृप्त नहीं होता है । ऐसे काल के हाथों में हम भी आ गये हैं, हमको भी वह भक्ष्य बना लेगा !
कहने का मतबल यह है कि मृत्यु निश्चित है ! धन संपत्ति यहाँ रह जायेगी और जीव परलोक चला जायेगा ! धन-संपत्ति पाने के लिए, मन वचन काया से किये हुए पाप-हिंसा, असत्य, चोरी, बेइमानी वगैरह, जीव के साथ परलोक चलेंगे । और, पापों की गठरी के साथ जो परलोक जाता है, उसको कौन सी गति में जाना पड़ता है, वह आप जानते हो न ?
सभा में से : नरक में !
महाराजश्री : फिर भी पापों की गठरी बाँधते जा रहे हो ? नरक के दुःखों से निर्भय हो गये हो क्या ? नरक की वेदनाओं को कभी याद करते हो ? नरक के दुःखों का लिस्ट आप के बेडरूम में अथवा ड्रोईंगरूम में रखा करो। नरक में जाना यानी कोई बगीचे में नहीं जाना है ! हिटलर के 'गेस चेम्बर' से भी बहुत ज्यादा भयंकर नरक है । 'गेस चेम्बर' में एक बार मौत हो जाती है, जब कि नरक में पुनः पुनः घोर दुःख सहना पड़ता है ! नरकगति की वेदनायें :
सभा में से : नरक में कैसी वेदनायें होती हैं ?
महाराजश्री : वहाँ १० प्रकार की क्षेत्र वेदना होती है ।
१. आहार्य पुद्गलों का बंधन : प्रति समय आहारादि पुद्गलों के साथ जो बंधन होता है, वह प्रदीप्त अग्नि से भी अति भयंकर होता है ।
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२. गति : गधे की चाल से भी नारकों की चाल अति अशुभ होती है । तप्त लोहे की भूमि पर पैर रखने से जो वेदना होती है, उससे बहुत ज्यादा वेदना, नरक की जमीन पर चलने से होती है ।
३. संस्थान : जिस पक्षी के पंख कट गये हों, वह कैसा लगता है ? उससे ज्यादा खराब उनका संस्थान होता है ।
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४. भेद : भित्ति पर से जो पुद्गल गिरते हैं वे शस्त्र की धार से भी ज्यादा पीड़ाकारी होते हैं ।
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शान्त सुधारस : भाग १
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