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________________ ५. वर्ण : अंधकारमय, भयंकर और मलिन ! भूमिमात्र श्लेष्म, विष्टा, मूत्र, कफ वगैरह बीभत्स पदार्थों से लिप्त होता है । मांस, केश, हड्डियाँ, दांत और चमड़े से आच्छादित स्मशानभूमि जैसा होता है । ६. गंध : सड़े हुए पशुओं के मृतकलेवरों की दुर्गंध से भी ज्यादा दुर्गंध वहाँ होती है। ७. रस : अति कटु रस होता है । ८. स्पर्श : अग्नि और बिच्छू के स्पर्श से ज्यादा तीव्र होता है । ९. परिणाम : अति व्यथा करनेवाला होता है । १०. शब्द : सतत पीड़ाओं से करूण कल्पांत करते जीवों के स्वर जैसा वहाँ स्वर होता है । सुनने मात्र से दुःखदायी होता है । इसके अलावा, शीत की, उष्णता की, क्षुधा की, तृषा की, खाज की, परवशता की, ज्वर की, दाह की, भय की और शोक की वेदनायें तीव्र होती है । परमाधामी देवों की ओर से जो उत्पीड़न होता है, वह अलग से है । परस्पर जो काटाकाटी... मारामारी होती है, वह अलग से होती है ! उपसंहार : इसलिए ऐसे पाप नहीं करें कि जो पाप नरक में ले जाये । अनित्यभावना का चिंतन करते हुए - शरीर की अनित्यता, - आयुष्य की अनित्यता, - यौवन की अनित्यता, - विषयों की अनित्यता, - संपत्ति - लक्ष्मी की अनित्यता, और - संबंधों की अनित्यता का ___ चिंतन करते रहें। बुढ़ापे की पराधीनता का और महाकाल (मृत्यु) की भयानकता का चिंतन करते रहें । इससे कोई पाप तीव्रता से नहीं होगा। तीव्रता से कर्मबंध नहीं होगा । नरक आदि दुर्गति में जाना नहीं होगा। आज बस, इतना ही - | अनित्य भावना १२७ | Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003661
Book TitleShant Sudharas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherVishvakalyan Prakashan Trust Mehsana
Publication Year
Total Pages302
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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