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________________ जिस प्रकार वृक्ष की छाया में मुसाफिर विश्राम लेते हैं, वृक्ष की घटा में पक्षी विश्राम लेते हैं... बाद में वे सब अपने - अपने स्थान पर चले जाते हैं, वैसे परिवार भी एक वृक्ष जैसा है । अपने अपने आयुष्य के अनुसार जीव परिवार में, कुटुंब में रहते हैं, बाद में वे भिन्न – भिन्न गति में चले जाते हैं । इसलिए स्वजनों के साथ ममत्व बाँधना व्यर्थ है । स्वजनों के संबंध क्षणिक हैं, अनित्य स्वजनों के संबंध को अनित्य बताने के बाद, उपाध्यायश्री पुनः स्वजन संयोग और धन-लक्ष्मी के संयोग को इन्द्रजाल जैसे बताते हुए कहते हैं : __ असकृदुन्मिष्य निमिषयन्ति सिन्धूर्मिवत् चेतनाचेतनाः सर्वभावाः । इन्द्रजालोपमाः स्वजनधनसंगमाः तेषु रज्यन्ति मूढस्वभावाः ॥७॥ समुद्र के तरंगों की तरह सभी सजीव-निर्जीव पदार्थ उत्पन्न होते हैं और नष्ट होते हैं। स्वजन और धन-लक्ष्मी के संबंध इन्द्रजाल जैसे हैं, फिर भी मूढ़ जीव उसमें आसक्त बनते हैं। धन-लक्ष्मी की अस्थिरता : शरीर, स्वजन, यौवन, संबंध, पाँच इन्द्रियों के विषय... इत्यादि की अनित्यता का चिंतन - विवेचन कर लिया, अब धन-लक्ष्मी की क्षणभंगुरता का, अनित्यता का चिंतन करना है । मनुष्य को आजकल, शरीर आदि से भी ज्यादा मोहासक्ति धन-संपत्ति में हो गई है । धन-संपत्ति के पीछे पागल बनकर मनुष्य दौड़ रहा है । उस धन-लक्ष्मी के विषय में शान्त चित्त से, स्वस्थ मन से कुछ सोचना आवश्यक है । नयी द्रष्टि से, ज्ञानद्रष्टि से चिंतन करना आवश्यक है । जो लक्ष्मी, जो संपत्ति, जो धन-दौलत, उत्कृष्ट पुण्यकर्म के उदय से चक्रवर्ती वगैरह सम्राट-राजाओं को मिलती है, उनके पास भी शाश्वत् काल नहीं रहती है, सदाकाल नहीं रहती है, तो फिर जिन का पुण्योदय नहीं होता, जो अभागी होते हैं, उन के पास कैसे रहेगी ? - कोई समझे कि मैं उच्च कुल में जन्मा हूँ, कई पीढ़ियों से संपत्ति चली आ __ रही है, अब कैसे जायेगी ? - कोई मानें कि मेरे में धैर्य है, वीर्य है, मैं कैसे लक्ष्मी को जाने दूँगा ? | १२२ शान्त सुधारस : भाग १ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003661
Book TitleShant Sudharas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherVishvakalyan Prakashan Trust Mehsana
Publication Year
Total Pages302
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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