________________
- साधु को वैसे शृंगारिक बातें, गीत वगैरह सुनना निषिद्ध ही होता है, और - वैसी गंदी, सेक्सी किताबें पढ़ने की नहीं होती हैं । ___ यदि साधु-साध्वी ईन मर्यादाओं का द्रढ़ता से पालन करें तो उसका अधःपतन नहीं हो सकता है । और यदि पालन नहीं करता है तो मानसिक अधःपतन तो होगा ही ! वैषयिक सुखों का आकर्षण बड़ा खतरनाक होता है । संबंधो की निःसारता :
उपाध्यायजी, सांसारिक विषयों की अस्थिरता की बात करने के बाद अब संबंधों की निःसारता बताते हुए कहते हैं : यैः समं क्रीडिता, ये च भृशमीडिताः
यैः सहाकृष्महि प्रीतिवादम् । तान् जनान् वीक्ष्य बत भस्मभूयंगतान्,
निर्विशंकाः स्म इति धिक् प्रमादम् ॥६॥ जिन स्नेही - स्वजन और मित्रों के साथ बहुत खेले, जिन के साथ स्नेहसभर बातें करते रहे, जिन की प्रशंसा करते रहे... उन के मृत देह को स्मशान में जलते देखते हुए... देह को भस्मीभूत हुआ देखते हुए भी हमें जीवन की नश्वरता का, संबंधों की क्षणिकता का विचार नहीं आता है - तो यह हमारा कैसा घोर प्रमाद है ? धिक्कार है हमारे प्रमाद को... । ___ कभी ऐसा भी होता है कि प्रियजनों के मृतदेह की भस्म, हवा से उड़कर... मार्गों पर भी आ जायें और हम जब उस मार्ग से गुजरें तब वह भस्म हमारे पैरों तले आ जायें ! हमें कभी विचार आया कि हमारे स्वजनों की भस्म हमारे पैरों तले कुचलते चल रहे हैं !
स्वजनों को, मित्रों को, स्नेहीजनों को, उन की मृत्यु के बाद मनुष्य प्रायः शीघ्र भूल जाता है । निःशंक होकर विषयोपभोग में डूब जाता है, जैसे कि उसकी मृत्यु होनेवाली ही न हो!
जिस शरीर से माता-पिता, बंधु, पुत्र, मित्र, पत्नी आदि से संबंध होता है, उन पर राग-मोह होता है, परंतु उन सभी स्वजनों की मृत्यु होने पर, उनके शरीर को जला दिये जाते हैं अथवा जमीन में गाड़ दिये जाते हैं, अथवा जंगली पशु उसका भक्ष्य कर जाते हैं । सब कुछ बिखर जाता है, क्या पता, कब उनका पुनः संबंध होगा? | अनित्य भावना
१२१ ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org