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द्रौपदी को पाँच पति क्यों ?
द्रौपदी को पाँच पति थे न ? वह पाँच पांडवों की पत्नी थी न ? क्यों उसको पाँच पति की पत्नी होना पड़ा ? जानते हो ? उस ने पूर्वभव में नियाणां किया था। पूर्वजन्म में वह साध्वी थी । शुद्ध संयमधर्म का पालन और घोर तपश्चर्या करती थी। __एक बार गुरूणी के मना करने पर भी, वह साधु पुरूषों का गलत अनुकरण करती हुई, रात्रि के समय नगर के बाहर कायोत्सर्ग - ध्यान करने गई । जहाँ वह खड़ी रही, उसके सामने, कुछ दूरी पर एक वेश्या का आवास था। आवास में रोशनी थी । वेश्या आवास के झरोखे में पाँच पुरूषों के साथ वार्ता-विनोद कर रही थी। दृश्य बड़ा आकर्षक था । उस साध्वी की निगाह उस द्रश्य पर पड़ी ! धर्मध्यान रूक गया; वेश्या के विचार मन में शुरू हो गये । पाँच पुरूषों के साथ उसकी जो क्रीड़ा देखी, मन में भा गई ! उसने सोचा : मुझे भी ऐसा जन्म मिले... पाँच-पाँच पुरूषों का प्यार मिले तो कितना अच्छा ! मैने शास्त्रों में सुना है कि तपश्चर्या से मनोवांछित मिलता है । मैं मेरी तपश्चर्या का यही फल मांग लूँ तो ?' और उस साध्वी ने पाँच पुरूषों का सुख मिले वैसा स्त्री का अवतार मांग लिया ! दूसरे जन्म में वह साध्वी द्रौपदी हुई ! वैषयिक सुखों का आकर्षण खतरनाक :
साध्वी जीवन से उसको वेश्या के जीवन ज्यादा अच्छा लगा! ब्रह्मचारी जीवन से उसको विषयभोग का जीवन ज्यादा प्रिय लगा ! मन से उसका स्खलन हो गया । तपश्चर्या का सौदा कर लिया ! कितनी बड़ी भूल कर दी साध्वी ने ? मन में वैषयिक सुखों का आकर्षण पैदा ही नहीं होने देना चाहिए ।
इसलिए - १. वैषयिक सुखभोग के द्रश्य नहीं देखें, २. शृंगारिक बातें, गीत वगैरह नहीं सुनें, ३. वासनाओं को उत्तेजित करें वेसी किताबें नहीं पढ़े।
साधुजीवन की मर्यादायें वैसी ही हैं कि जहाँ ईन तीन बातों का सहजता से पालन हो सकता है। - साधु को गाँव-नगर में या जंगल में पृथ्वी पर द्रष्टि रख कर चलना होता
है । ध्यान भी, नासिका के अग्र भाग पर द्रष्टि स्थिर कर करना होता है । | १२० ।
शान्त सुधारस : भाग १
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