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________________ उपाध्यायश्री विनयविजयजी, अनित्य भावना को 'भैरव' राग में गाते हुए आगे बढ़ते हैं : सुखमनुत्तरसुरावधि यदतिमेदुरं कालतस्तदपि कलयति विरामम् । कतरदितरत्तदा वस्तु सांसारिकं स्थिरतरं भवति चिन्तय निकामम् ॥५॥ सर्वं क्षणिकम्, सर्वमनित्यम्, सर्वमस्थिरम्' सब कुछ क्षणिक है, सब कुछ अनित्य है, सब कुछ अस्थिर है ! 'अनुत्तर देवलोक' के देवों के सुख भी कालक्रम से नष्ट हो जाते हैं... जो कि असंख्य वर्ष के सुख होते हैं, तो फिर संसार की ऐसी कौन सी वस्तु है... जो स्थिर हो, शाश्वत् हो, नित्य हो ? स्वस्थता से इस विषय में पूर्ण विचार कर ! ___ संसार में सब से ज्यादा दीर्घकालीन सुख अनुत्तर देवलोक में होता है - ३३ सागरोपम काल का ! वैसे सब से ज्यादा दुख होता है सातवीं तमःतमःप्रभा नाम की नरक में ! वह भी ३३ सागरोपम काल क ! उस का भी कालक्रम से अंत आ जाता है। संसार में सख भी स्थिर नहीं हैं, दुःख भी स्थिर नहीं है । सब कुछ अस्थिर है, अनित्य है । ज्ञानद्रष्टि के परिप्रेक्ष्य में देखनी है विश्व स्थिति को । देवलोक के सुख भी नित्य-शाश्वत् नहीं हैं - इसलिए वे सुख पाने की भी इच्छा नहीं करनी है । जो अनित्य है, जो क्षणिक है... वैसे सुखों की इच्छा नहीं करनी है ! इच्छा भी नहीं करनी है, प्रयत्न और पुरूषार्थ भी नहीं करना है ! हाँ, विशिष्ट तपश्चर्या से इच्छित सुख की प्राप्ति दूसरे जन्म में होती है, परंतु वैसे सुख, सुख के साधन पाकर जीव सुख का अनुभव नहीं कर पाता है ! एक साधु को चक्रवर्ती का सुख भा गया ! मनुष्य का मन कितना चंचल है ! ज्ञान होते हुए भी, जानकारी होते हुए भी - चक्रवर्ती राजा का सुख भी क्षणिक है, अनित्य है, फिर भी कब मोह का बादल आत्मा पर छा जाता है, और जो तुच्छ होता है, असार होता है, उसकी इच्छा मन कर लेता है ! शास्त्रो में एक साधु की कहानी पढ़ी थी । एक तपस्वी साधु थे । घोर तपश्चर्या करते थे । ज्ञानी भी थे । उनको कीर्ति सुनकर चक्रवर्ती राजा अपनी रानी के साथ वंदन करने गया । मुनि के दर्शन | ११८ शान्त सुधारस : भाग १ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003661
Book TitleShant Sudharas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherVishvakalyan Prakashan Trust Mehsana
Publication Year
Total Pages302
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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