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नहीं सकता, देख नहीं सकता। * इन्द्रियजन्य वैषयिक सुखपान करनेवाला, सुखपान करते समय नहीं समझता
है कि वह किंपाकफल खा रहा है ! किंपाकफल खाने में मीठा होता है, परंतु
परिणाम मृत्यु होती है ! * परंतु किंपाकफल खाने से एक बार ही प्राणहरण का दुःख पनुष्य पाता है,
जब कि इन्द्रियजनित विषयसुख भोगने से चारों गति में अनेक बार जन्म
मृत्यु के दुःख पाता है । * विषय सुखों की इस वास्तविकता को जान कर, उन सुखों से विमुख रहना
चाहिए । मन-वचन-काया से शुद्ध-पवित्र भावों को धारण करें। विषयानन्द
और आत्मानंद का भेद यथार्थ रूप में समझ लः । संबंध स्वप्न; इन्द्रजाल :
इन्द्रियों के विषय सुखों की अनित्यता और भयानकता बताने के बाद, उपाध्यायश्री विनयविजयजी संबंधों की अनित्यता बताते हैं -
'मित्र-स्त्री-स्वजनादिसंगमसुखं स्वप्नेन्द्रजालोपमम् ।' 'मित्र-स्त्री-स्वजनों के संयोग का सुख स्वप्न जैसा है अथवा इन्द्रजाल जैसा
संसार में यदि कोई व्यापक बंधन है तो यह संबंधों का है ! जीव का जन्म होते ही माता का संबंध निश्चित हो जाता है । माता के लिए पुत्र या पुत्री का संबंध बन जाता है । वैसे ही पिता का संबंध बन जाता है । यह माता, यह पिता,' यह संबंध स्नेह से, राग से दृढ होता जाता है । थोड़ें बडें होने पर मित्रों का संबंध बनता है । मित्रों के साथ खेलने से, फिरने से, खाने - पीने से वह संबंध भी पक्का बनता जाता है । फिर यौवन आने पर जब शादी होती है तब पति-पत्नी का संबंध बनता है । परस्पर स्नेह-राग-मोह बढ़ने से यह संबंध भी दृढ़ होता है । इस प्रकार भाई-बहन का संबंध, भाई-भाई का संबंध, चाचामामा का संबंध....संबंधों की जाल विस्तृत होती जाती है ।
संबंधों के साथ, संबंधों को निभाने के लिए कुछ कर्तव्यों का पालन करना अनिवार्य होता है । संबंध अच्छे बनाये रखने के लिए कुछ आदान-प्रदान करना पड़ता है । यदि उसमें कुछ कम-ज्यादा होता है तो संबंध बिगड़ता है । संबंधों में धीरे धीरे स्वार्थ-तत्त्व का प्रवेश होता है, तब संबंध दुःखदायी बनते हैं ।
| अनित्य भावना
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