SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 330
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३२४ राय धनपतसिंघ बदाउरका जैनागमसंग्रह नाग तेतालीस-(४३)-मा. एटले सजति जे मोद ते प्रत्ये ( गढ़ति के०) जाय . (त्ति बेमि के० ) इति ब्रवीमि एटले एम हूं तीर्थकरना उपदेशथी कहुँ ढं. हवे मुधाजीवी साधु उपर दृष्टांत कहे :- एक राजा धर्मनी परीक्षा करवा माटे कदेतो हतो के, जे को उपर उपकार करीने तेना बदलामां तेनी पासेथी अन्नपान खे, ए कां धर्म नथी. माटे शुक्रधर्म कोण पाले बे, तेनी हुं परीक्षा करुं बु. एम विचारी तेणे मोदक श्रापवा सारु घणा साधुने तेड्या. त्यारे कार्पटिकादिक श्रनेक लोको एकग थया. ते जो राजा तेमने पूडवा लाग्यो के, तमे कया साधनथी निर्वाह करो बो ? त्यारे एके कडं के, हु मुखेकरी निर्वाह करूं बुं, बीजाए कह्यु, हुँ पगे करी, त्रीजाए कहुं हुं हाथे करी, चोथाए कहुं हुं लोकना अनुग्रहथी, पांचमाए कह्यु, हुं मुधाजीवी ढं. ते सांजली राजाएं तेनो खुलासो ते जुदा जुदा सर्वेने पूज्यो, त्यारे पेहलो मुखथी श्राजीविका चलावनारो केहवा लाग्यो के, हुं संदेशो केदनार बुं माटे मारी उपजीविका मुखनपरज डे. बीजो पगथी आजीवका चला. वनारो केहवा लाग्यो के, हुं लेखवाहक ढुं, माटे मारी उपजीविका पग उपर डे, त्रीजो हस्तजीवी केहवा लाग्यो के, हुं लेखक हुँ माटे मारी उपजीविका हाथनपर , चोथो परिव्राजक केहवा लाग्यो के, इं प्रव्रजित बुं, माटे मारी जीविका लोको उपर बे. पांचमो जैनी साधु हतो तेणे कडं के, मे संवेगथी दीक्षा लीधी ने माटे हुँ मुधाजीवी एटले जात्यादि आलंबनविना तथा प्रत्युपकार बुद्धिविना मलेल श्राहार वडे निर्वाह करनार बुं. ते सांजली राजाए जाण्यु के, ए पांचमो साधु कहे ,ते खरो धर्म .एम जाणी राजा साधुने लश्ने श्राचार्य पासे गयो, अने दीदा लेतो हवो. एमां जे साधुए कहुं हुं मुधा वृत्तिए जीवमान बुं. ते साधु मुधाजीवी जाणवो. हवे मुधादायी उपर कथा कहे :- एक परिव्राजक हशे, ते एक नागवतनी पासे श्राव्यो, भने केहवा खाग्यो के, हूं तमारे घेर चोमासुं रहं, तमे मारो निर्वाह चलावो. त्यारे नागवत केहवा लाग्यो के, तमे जो माझं कांक्षण काम न करो, अने केवल निःस्पृहपणे जो रहो, तो हुँ तमारो निर्वाद चलावीश. ते परिव्राजके तहत्ति कयु, थने ते नागवतने घेर चोमासु रह्यो. हवे ते नागवत परिव्राजकनो निर्वाह चलावे . एक वखत शुं थयु के, ते नागवतनो घोडो चोरोए हरण कस्यो हतो, अने सवार थ गयेली जाणी एक ठेकाणे तनावपर बांधी राख्यो हतो, ते वामां ते परिव्राजक तलाव उपर नाहवा गयो, त्यां तेणे ते घोडो जोयो. जोश्ने पड़ी ते श्रावीने नागवतने केहया लाग्यो के, तलावना तीर जपर मारां वस्त्र हुँ वीसरी श्राव्यो, त्यारे नागवते तलाव उपर माणस मोकल्यो. ते माणसे आवीने जा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003659
Book TitleAgam 42 Mool 03 Dashvaikalik Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarbarilal Nyayatirth
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages728
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_dashvaikalik
File Size29 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy