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२६ राय धनपतसिंघ वदाउरका जैनागमसंग्रह भाग ४३ मा. बिछा.॥५॥” इत्यादि।या पुनर्नावतो न व्यतः सेयम् । जहा के वि पुरिसे मंदमंदप्पगासप्पदेसे संहियं इसिवलिअकायं रहुं पासित्ता एस अहि त्ति तत्वहपरिणामए णिकडिया सिपत्ते दुशं दुशं बिंदिया। एसा नावउँ हिंसा न दवउँ । चरमनङ्गस्तु शून्य इत्येवंनूताया हिंसायाः प्रतिपदोऽहिंसेति । एकाथिकानिधित्सयाह । अहिंसजीवाश्वाति । न हिंसा अहिंसा न जीवातिपातः अजीवातिपातः। तथा च तह. तः स्वकर्मातिपातो नवत्येवाजीवश्च कर्मेति नावनीयमिति । उपलदणत्वाच्चेह प्राणातिपातविरत्यादिग्रह इति गाथार्थः । सांप्रतं संयमव्याचिख्यासयाह ॥ पुढ विदगअगणिमारुय-वणस्सई बितिचउपणिं दिशजीवे ॥ पेहापेहपमऊण-परिठवणमणवश्काए ॥४६ ॥ व्याख्या ॥ पुढवाश्याण जाव य, पंचिंदिय संजमो नवे तेसिं ॥ संघट्टणादि ण करे, तिविहेण करणजोएणं ॥१॥ अजीवहिं जेहिं, गहिएहिं असंजमो श्ह नणि ॥ जह पोब दूसपणए, तणपणए चम्मपणए अ॥२॥ गंमी कबवि मुठी, संपुमफलए तहा बिवाडी श्र॥ एवं पोबहपणयं, पमत्तं वीधराएहि ॥३॥ बाहपुहत्तेहि, गंमीपोबो उ तुल्झगो दीहो ॥ कबवि अंते तणु मने पिहलो मुणेशवो ॥४॥ चउरंगुलदीहो वा, वहागिति मुहिपोबगो अहवा ॥ चउरंगुलदीहो चित्र, चउरस्सो सो उ विमे ॥ ५॥ संपुमर्ड दुगमाई, फलगा वोठं विवाडिमेत्ताहे ॥ तणुपत्तो सिअरूवो, होइ डिवाडी बुहा वेति ॥ ६॥ दीहो वा हस्सो वा, जो पिठुलो होइ अप्पबाहरो॥ तं मुणिअसमयसारा, विवाडिपोखं नणंतीह ॥ ७॥ दुविहं च दूसपणशं, समास तं पि होइ नायवं ॥ अप्पडिसेहियदूसं,पुप्पडिलेहं च विमेयं ॥ ॥ अप्पडिले हिअसे, तूली उवधाणगं च णायत्वं ॥ गंमुवधाणालिंगिणि, मसूरए चेव पोबगए ॥ ए॥ पदह विको यवि पावा-रणवतए तहय दाढगाली ॥ दुप्पडिले हिथ दूसे, एवं बीधे नवे पणगं ॥ १० ॥ पदह विहबबरणं, कोयव रूअपूरि पडि ॥ दढगाविधोपोत्ती, सेस पसिझा नवे नेदा ॥ ११॥ तणपणगं पुण नणिरं, जिणेहिं कम्महगंठिदहणेहिं ॥ सालीवीहीकोदव,-रालग रमे तणारं च ॥ १२॥ अयएलगाविमहिसी-मिया मजिणं च पंचमं होई ॥ नलियाखवगवट्टे, कोसगकित्तीय वितिएय ॥ १३॥ तह वि अहिरलाई, ताईन गेण्ह असंजमं साहू ॥ गणाजब एए, पेहपमधित्तु तब करे ॥ १४ ॥ एसो पेह उपेहा, पुणो वि दुविहा उ होइ नायवा ॥ वावारावावारे, वावारे जह उ गामस्स ॥ १५॥ एसो जविरकगोद अब्बावारे जहा विणस्संतं ॥ किं एयं नु उविकसि, दुविहाएविन अहियारो ॥१६॥वावारुविकतहिं, संतोनियसीसगाणचोएई ॥ चोएई श्यरं पि हु, पावयणीअम्मि कद्यम्मि ॥१७॥ अवावारजवेकण, विचोइए गिहिं तु सीअंतं ॥ कम्मेसु बहुविहेसु, संजम एसो उवरकाए ॥ १७ ॥ पडिसागरिए अपमधिए, सु
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