SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 33
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( ३२ ) आयहोलीके जैनमंदिरकी प्रसिद्ध प्रशस्ति शक संवत् ५५६ की लिखी हुई है । यह महाकवि कालिदास और भारविकी समता करनेवाले + रविकीर्तिकी रचना है । उसमें वे लिखते हैंप्रशस्तेर्वसतेश्चास्या जिनस्य त्रिजगद्गुरोः । 1 कर्त्ता कारयिता चापि रविकीर्तिः कृती स्वयम् ॥ अर्थात् इस प्रशस्ति ( शिलालेख ) और त्रिजगद्गुरु जिनदेव की वसति ( मन्दिर ) का कर्त्ता और कारयिता (बनवानेवाला) स्वयं रविकीर्ति है । प्रशस्ति में यह नहीं लिखा है कि रविकीर्ति किस संघके आचार्य थे; परन्तु संभवतः वे द्रविड़ संघके ही होंगे । क्योंकि देवसेनसूरिने द्रविड़ संघके उप्तादक वज्रनन्दिके विषयमें लिखा है कि उसने वसति (मन्दिर) आदि बनवाकर प्रचुर पापका संग्रह किया x । रविकीर्तिने भी उक्त मन्दिर निर्माण * यह प्रशस्ति इंडियन एण्टिक्वरी जिल्द ५, पृष्ठ ६७-७१ और 'प्राचीन लेखमाला' भाग १, पृ०७०७२ में मुद्रित हो चुकी है । + स विजयतां रविकीर्तिः कविताश्रितकालिदासभारविकीर्तिः । * सिरिपुज्जपादसीसो दावि संघ कारगो दुट्टो | मेण वज्जनंदी पाहुडवेदी महासत्तो ॥ २४ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003657
Book TitleHarivanshpuranam Purvarddham
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarbarilal Nyayatirth
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages450
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy