SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 25
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सम्पादनके विषयमें २. हिन्दी सारांश भी साथमें दे दिया है जिससे हिन्दीभाषाभाषी भी ग्रन्थके विषयों एवं तद्गत हार्दको समझ सकेंगे। विषयसूची भी साथमें निबद्ध है। उससे भी उन्हें लाभ पहुंचेगा। ३. अन्तमें दो परिशिष्ट भी लगाये गये हैं जिनमें एक स्याद्वादसिद्धिकी कारिकाओंके अनुक्रमका है और दूसरा ग्रन्थगत व्यक्ति-सिद्धान्त-सम्प्रदायादि बोधक विशेष नामोंकी सूचीका है। ४. बत्तीस पृष्ठकी विस्तृत प्रस्तावना है जिसमें ग्रन्थ और ग्रन्थकारके सम्बन्धमें विस्तारसे प्रकाश डाला गया है। ५. दर्शनशास्त्रोंके विशिष्ट अध्येता, सम्पादक, लेखक एवं समाजके ख्यातिप्राप्त विद्वान् माननीय पं० महेन्द्रकुमारजी न्याया. चार्यका चिन्तनपूर्ण प्राकथन भी निबद्ध है जिसमें उन्होंने जैनदर्शनके प्रमुख सिद्धान्त एवं प्रस्तुत ग्रन्थके प्रतिपाद्य विषय 'स्याद्वाद' पर सुन्दर प्रकाश डाला है। कृतज्ञता-प्रकाशन इस ग्रन्थके कार्यमें हमें अनेक सहृदय महानुभावोंने भिन्नभिन्न रूपमें सहायता पहुंचाई है उसके लिये हम उनके अत्यन्त कृतज्ञ हैं। माननीय मुख्तारसाहब और प्रेमीजीने इसके सम्पादनादिके लिये उत्साहित किया तथा अपना अनुभवपूर्ण परा. मर्श दिया। सम्माननीय पं० महेन्द्रकुमारजी न्यायाचार्यने मेरे अनुरोधको स्वीकार करके अपना चिन्तनपूर्ण प्राक्कथन लिखनेकी कृपा की और मिलानके लिये काशी पहुंचने पर इस कार्यकी सराहना करते हुए प्रोत्साहन दिया । श्रीमान् पं० के० भुजबलि जी शास्त्री मूडबिद्रीने हस्त-लिखित तथा ताडपत्रीय प्रतियाँ भेजकर मुझे अनुगृहीत किया। प्रिय मित्र पं० अमृतलालजी जैनदर्शनाचार्य और पं० देवरभट्टजी न्यायाचार्यने मिलान कार्यमें Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003653
Book TitleSyadvadasiddhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarbarilal Nyayatirth
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year1950
Total Pages172
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy