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________________ स्याद्वादसिद्धि बौद्धीयत्वात् (१०-३४) बौद्धेयत्वात् जाद्धियत्वात् सद्भावाद्व दो (११-२) सद्भावो द्वदो सद्भावो द्वधो गुणः कस्मानीरूपत्व- त प्रतिवत् गुणस्तस्मानि. तयेत्यसत् (११-११) रूपत्वत इत्यसत् ततो दोषा (११-१३) तदोषा तदोषा योगे(१४-३०) यागे यागे पयुदासनार्थतः (१३-२०) पर्यु दासन इत्यतः पर्यु दासन इथतः त्रुटित पाठोंकी पूर्ति... १. [नमः श्रीवर्द्धमा] नाय २. सौ [ख्यं वा दुःखमेव वा] (१-३) ३. पृ [थिव्यादिभ्य इ] त्येव (१-१२) ४, नीय [मानत्वमे] नयोः । (१-१५) ५.. धर्मो [न स्यात्फलात्य] यात्। (२-१) . ६. इति चेत् दृष्टमिष्टं [हि चान्योन्याश्रय] दूषणम्। (२-३०) ७. सन्ता [नो हि भवेत्तत्र ततः] कतुः फलात्ययः। (४-१) ८. न हि [स्यादेकताऽभावे बौद्धानां] स्मरणादिकम् । (४-५५) ६. पक्षधर्मत्वहीनोऽपि [गमकः कृत्तिको दयः ॥ (४-८३) संस्करणकी उल्लेखनीय बातें इस संस्करणकी जो उल्लेखनीय बातें हैं वे निम्न हैं: १. ग्रन्थको अधिक शुद्ध रूपमें प्रस्तुत करने तथा त्रुटित पाठोंकी पूर्ति करनेका यथेष्ट प्रयत्न किया गया है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003653
Book TitleSyadvadasiddhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarbarilal Nyayatirth
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year1950
Total Pages172
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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