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________________ सम्पादनके विपयमें २३ ३. क प्रति-यह भारतीय ज्ञानपीठ काशीकी प्रति है, जो सुवाच्य तथा सुन्दर अक्षरोंमें लिखी हुई है और जो २०४३०/८ पेजी सफेद रूलदार पुष्ट कागज पर नीली स्याहीसे लिखी है। इसका काशीसूचक 'क' नाम है। 'स' प्रतिसे यह प्रति कम अशुद्ध है। संशोधन और त्रुटित पाठपूर्ति ऊपर कहा गया है कि प्रारम्भ में जो प्रति प्राप्त हुई थी उसमें बहुत अशुद्धियां, पाठभेद और त्रुटित पाठ विद्यमान हैं । उनका संशोधन हमने मूल ताडपत्र प्रतिके आधारसे किया है और संशोधनमें उससे बड़ी सहायता ली है। ताडपत्र प्रतिमें जो पाठ त्रुटित हैं और जिनकी संख्या बहुत बड़ी है उनमें सौ-डेढ़सौ त्रुटित पाठोंकी पूर्ति विषयसंगति, सन्दर्भ और प्रकरणके अनुसार हमने यथाशक्ति अपनी ओरसे करनेका प्रयत्न किया है और उन्हें [ ] ऐसे व्रकट में रखा है । तथा शेषको समय एवं श्रमसाध्य जानकर छोड़ दिया है। उदाहरणके तौरपर कुछ पाठभेदात्मक संशोधनों और त्रुटित पाठोंकी पूर्तिको नीचे दिया जाता है, जिससे पाठक उनकी संगति एवं प्रामाणिकता आदिको कुछ जान सकेंगेःसंशोधन दैत्यादृष्टद्वयोः (७-१४) दैत्यादृष्टद्वयोः दैत्योत्कृष्टद्वयोः वक्तृत्वभावतः (-२) वक्तृत्वभावतः वक्तृत्यभावतः ह्यस्यान्यैश्वावकल्प्यते (१०.१६) त प्रतिवत् ह्यस्यान्यैव कल्प्यते यव दाध्ययन (१०-२७) यद्व द्यनयं यद्व द्यनयं दधुनेव भवेदिति (१०-२७) दधुने भववेदिति स प्रतिवत् । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003653
Book TitleSyadvadasiddhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarbarilal Nyayatirth
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year1950
Total Pages172
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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