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________________ रायधनपतसिंघ बादाडुरका जैनागम संग्रह नाग दुसरा. ७७३ (चियत्ततेवरपरघरपवेसा के ० ) राजाना अंतःपुरनी पेठें लोकना घरने विषे प्रवेश क रवानो जेणे त्याग करचोबे, अथवा प्रीतिकारि बे परदर्शनादिकना घरने विषे प्रवेश जेनो, एतावता परतीर्थिकने पर घर जाणीने, घणा मजबूत कारणो विना, तेमने घरे न जाय, तथा (चाउदसमुद्दिन के० ) चतुर्दशी, अष्टमी, अने उद्दिष्टा एटजे महाकल्या कि तिथि ( मासिणीसु के० ) पूर्णिमा चतुर्मासिक तिथि, एटला दिवसोने विषे (पडिपुन्नंपोस हंस मंत्र पालेमाया के० ) प्रतिपूर्ण पोसहने सम्यक् प्रकारें पालता थका विचरे. वली ते श्रावक कहेवाळे तोके, ( समो निग्गंथे के० ) श्रमण तपस्वी निग्रंथने (फासुएसपिएं के०) प्राशुक एटले निर्जीव एषणीक, एटले बहेंतालीश दो रहित एवो ( सण पाणखाइमसाइमेां के ० ) अशन, पान, खादिम, स्वादिम, (वषप डिग्गहकंबल पाय पुंणं के०) तथा वस्त्र, पात्र, कंबल, पाय पुंढण, (सह ने सके ांके ० ) औषध, नैषज्य, (पीठफलग सेता संथारएणं पडिलानेमाला के० ) पीठ, फलक, शय्या, संथारो तेणेकरी प्रतिजानता थका, (बहुहिंसीलवयगुणवेरमणपच्चरका पोस होववासे हिं के०) घणां एक शीलव्रत तथा शीलते गुनाचार, तथा स्थूल प्राणातिपात, वेरमणादिक गुण व्रत ते देशतादिक योग्य पणे लीवेला, तथा नवकारसी पोरसी प्रमुख पच्चरका ना करनार, तथा पौषध सहित उपवासना करनार, (हापरिग्गहिएहिं के० ) तथा यथा परिग्रहित एटले पोतानी इवा माफक खादखावे जेणे; ते गुं खादयावे? तोके (तवोक मेहिं के०) तप कर्म, तेणे कर, (पानावेमाणा विहरंति के ० ) पोताना यात्मानें ना वता का विचरे ॥ ७६ ॥ (तेएयारुवेणं विहारेणं विहरमाणा के०) ते एतद्रूप पणे एटले एवा पूर्वोक्त श्रावकने खाचारें प्रवर्त्तता थका, ( बडुवालाई के०) घणा वर्ष सुधी (स मोवासपरियागं के० ) श्रमणोपासकना पर्यायने ( पानांति के० ) पाले, ( पाउ तित्ता० ) पालीने (याबादसिनप्पन्नं सिवा के० ) रोगादिक खाबाधा उपनी, (अ गुप्पन्नं सिवा के ० ) अथवा अनुत्पन्न एटले नवपनी बते ( बहुरंनत्ताई के ० ) घणा जात पाणीनो (असणाएपञ्चरकाए के० ) अनशनपञ्चरके ( पञ्चरका एता के० ) एम घणा नक्त पाननो अनशन पच्चरिकने ( बहुरंनत्ता इंत्र सणाबेद के० ) ते अनशनने विषे घणा नक्त पानने बेदे, एटले परिहरे. ( बेदेइत्ता के० ) बेदी एटले परिहरीने, घ यादिवस अनशन पालीने ( खालोश्यप डिक्कंता के० ) खालोचे पडिकमे एटले जे पाप लागां होय, ते अरिहंतादिक खागल प्रकाशीने तेनां मिथ्या दुष्कृतादिक खापीने (समाहि पत्ता के०) ज्ञानादिकनी निर्व्याघात पणे समाधि पामिने एटले पडिकमीने समाधि प्राप्त थइने, मरना अवसरें काल करीने एटले समाधि मरण करीने अनेरा देवलोकने विषे देवता पणे उपजनार थाय. ते कहेबे, महोटी द्धिबे वैमानिकादिकनी तेने विषे, मदो U Jain Education International For Private Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003652
Book TitleAgam 02 Ang 02 Sutrakrutang Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1880
Total Pages1050
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size42 MB
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