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________________ ७२ तिीये सूत्रकृतांगे वितीय श्रुतस्कंधे वितीयाध्ययनं. न प्रकतिरूपजे पाप, तेना स्वरूपने उपलब्ध एटले पाम्याने, तथा (आसव के० ) आश्रव ते शुनागुनकर्मनुं श्राव, अने (संवर के०) संवर ते धावता कर्मनुं रोक संवर, तथा (वेयणा के० ) वेदना ते साता असातारूप बे प्रकारनी, (णिकराके०) निर्जराते कर्मनुं खपाव, (किरियाहिगरण के०) क्रियायधिकरण एटले घर, हाट, खज, कटारी, उखल,मुसल थकी कर्म बंधाय ते, (बंधके०) बंध चार प्रकारना तथा (मोरकके०) कर्म थकी मूकाव ते जाणवाने विषे (कुसला के०) माह्याने, (यस हेज के०) को कष्ट पड्या थकी देवादिकनी सहायतानी वांडा न करे सहायरहित धर्मना करनार होय. ( देवासुरनागसुवनजस्कररकसकिन्नरकिंपुरिसगरुलगंधवमहोरगाइए हिंके०) तथा देव एटले वैमानिक देवो, असुर एटले असुर कुमार नवनवासी देवो, नाग कुमार, सुवर्ण कुमार, यद, राक्षस, किंन्नर, किंपुरिस, अश्वमुख गरुड, गंधर्व, म दोरगादिक, ( देवगणेहिं के) इत्यादिक देवताना समूह ते, (निग्गंथापावयणा के०) निग्रंथना एटले नगवंतना प्रवचन थकी तेने (थक्कमणिका के० ) च लावी नशके, मोलवी नशके. (णमेनिग्गंथेपावयणेणिस्संकिया के०) तथा ए निग्रंथना प्रवचनने विषे निःशंकित एटले संदेहरहित होय, एटले जे श्रीवीतराग बोल्या तेज सत्य के एम जाणे. ( णिकं खियाके० ) सूत्र बोडी बीजु शास्त्र वांडे नही, (निवितिगिला के ) धर्मना फलने विष संदेहरहित होय, तथा सूत्रोक्त साधुना मार्गने विषे उगहारहित होय, (लहा के०) सूत्रसांजलवा थकी लाधाडे सूत्रना अर्थ जेने,(गहोयहा के०) धारणायें करी ग्रह्याने अर्थ जेणे, (पुलिया के० ) संशय उत्पन्न थया थकी पूबीने खरा कस्याने अर्थ जेणे, (विपिडिया के०) वारंवार विशेषे पूबीने निश्चित कस्याले अर्थ जेणे, (अनिगया के०) प्राप्त थयेला अर्थने पूज्या पड़ी, निर्णय करी धाखाने अर्थ जेणे, एटले प्रकारे तत्वार्थना जाण, (अहिमिंजपेम्मा पुरागरत्ता के० ) अस्थि अने हाड मांहेली मिंजा जे धातु विशेष ते जगवंतना सिमां तरूप कसंबादिकने विषे प्रेमरूप रागें करी रंगाणाने एटले रागरक्तने, तथा पांच माहे मच्या थका एवी धर्मनी कथा कहे के, (अयमानसो के) अहो बायुष्यमंतो! (निग्गं थेपावयणेके०) निग्रंथ एटले साधु संबंधिजे प्रवचन सिद्धांत ने (अयंपरमठेके० ) एज आत्माने अर्थे उत्कृष्ट मोद साधन रूप मार्ग. (सेसेषण के०) अने शेष बीजा कपिलादिकना ग्रंथ, तथा धनधान्यादिक पुत्रकलत्रादिक ए सद् अनर्थ कारीने, ए सर्व असार एवोजे या संसार तेनी दिनां कारण रूपले. एवी कथा करे, एरीतें नियंथना प्रवचनने विषे रागी, (नसियफलिहा के०) निर्मल स्फाटिकना जेवू चित्त जेजें, (अवगुयज्वारा के०) जेना घरना बारथा नोगल रहित एटले सर्व काल उघाडा , Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003652
Book TitleAgam 02 Ang 02 Sutrakrutang Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1880
Total Pages1050
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size42 MB
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