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________________ रायधनपतसिंघ बादाउरका जैनागम संग्रह भाग उसरा. ७६७ वेमाणा पनासेमाणा गश्कल्लाणा किल्लाणा आगमेसिनदयावि नवंति एसगणे आयरिए जाव सबउरकपहीणमग्गे एगंतसम्मे सुसा दू दोबस्स गणस्स धम्मपरकस्स विनंगे एवमादिए ॥४॥ अर्थ-(एगचाए के०) एम को एक पुरुष (पुणे के० ) वली (एगे के ) एक ज शरीरें एटले तेज एक नवमां (नयंतारोनवंति के ० ) सिदिगति गामि होय. (थ वरेपुण के०) अपर एटले बीजा वली (पुचकम्मवसेसेणं के०) जेने पूर्वस्त कर्म अ वशेष रह्यां होय तो तेवा पुरुष (कालमासेकालं किच्चा के० ) कालने अवसरें काल क रीने (अन्नयरेसु के०) अन्यत्र ( देवलोएसु के० ) देवलोकने विषे ( देवताएउववत्तारो नवंति के०) देव पणे उपजनार थाय (तंजहा के० ) ते देवलोक केवा होय तेकडे (महडिएसु के०) महर्दिक महोटी शधिना धणी, (महजुत्तिएसु के०) महाद्युति वान, (महापरिक्कमेसु के०) महोटा पराक्रम वाला, (महाजसेसु के) महोटा यश ना धणी, (महाबलेसु के०) महोटा बलवान, (महापुनावेसु के० ) महोटा अतिश यवान एवा महानुनाव वैक्रियादिक शक्तियें करीसहित होय. (महासुखेसु के०)महोटा सुखना धणी, एटला वाना जेस्थानकने विषेले (तेतबदेवानवंति के.) ते त्यां देवता पणे होय, ते देवता केवा होय. ते कहेले. महोटी रुक्ष्यिादिक गुणे सहित यावत् महो टां सुख सहित (दार विराश्यवहा के०) हारें करी विराजित शोनायमान, हृदय कमल जेनां वली (कडगतुडियर्थनियनूया अंगयं के० ) कटक, केयूर, अंगदादिकें करी स्तंनित नुजा जेनी, वली देदीप्यमान (कुंमलमगंमयल के०) कुंमलें करी - घसायेला एवा गालना तट जेणे शोनित कस्याले (कन्नपीढधारी के०) कुंमलना प्राधार माटें कान माटे कर्णपीठ धारी कह्या अथवा कर्णपीते काननुं बाजरण विशेष जाणवू. ते पानी कुंमल, तेना धरनारा. (विचित्तहबानरणा के०) विचित्रप्रकारना मुदि क आनरण जेना हाथमा रहेलांडे तेरोकरीसहित (विचित्तमालामनलिमनडाके) वि चित्र प्रकारनी माला सहित मुकुटना धरनार, (कनाणगंधपवरवबपरिहिया के०) कल्या णकारी सुगंधित वस्त्रना पेरनार, तथा (कनाणगपवरमन्नापुलेवणधरा के० ) कल्याण कारी प्रवर माल्य विलेपनना धरनार, (नासुरबोंदीपलंबवणमालधरा के० ) देदीप्य मान शरीर प्रलंब एवी लटकतिजे वनमाला रूप आनर्ण विशेष, तेना धरनारा, (दि घेणंरूवेणं के०) प्रधान रूपें करी सहित, (दिवेणंवन्नेणं के०) दिव्य वर्णेकरी सहित, (दिवेणंगंधेणं के०) दिव्य गंधे करी सहित, (दिवेणंफासेणंके०) दिव्य स्पर्श करी सहि त, (दिवेणंसंघाएणं के० ) दिव्य शरीरनो संघातन समुदाय तेणे करी सहित, (दिवेणं Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003652
Book TitleAgam 02 Ang 02 Sutrakrutang Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1880
Total Pages1050
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size42 MB
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