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राय धनपतसिंघ बादाउरका जैनागम संग्रह नाग उसरा. ७६३ मद्य मांसना परित्यागी होय, (णोणियामरसनोई के ) सर्व काल अत्यंत सरस या हार लीये नहीं, (हाणाश्या के० ) सर्वकाल कायोत्सर्गना करनारा, (पडिमाश्या के०) प्रतिमाना वहणनारा, (नक्कडबासणिया के०) एक स्थानकें केटलो एक काल निवृत्ति रहे,(सिडियाके०) निषेधवासनना बेसनारा एटले निपेय पदार्थयुक्तप्टथवीपर बेसे, (वीरासणिया के०) वीरासने करी रहे, बाजोठ उपर बेशी, पग नीचामूके, पनी बाजोत दूर करीने तेज आसने बेसे. (दंमायतिया के ) दंनी पेठे लांबो थयो थको रहे. (लगंमसाइणो के.) वांका काष्ठनी पेठे शयन करे, मस्तक, पानी अने वासो, तेने नूमीलागे, परंतु बीजे नलागे (अप्पानडाअगत्तया के ) वस्त्र रहित, वस्त्ररूप प्रावरण न राखे, (अकंमुयाके) शरीरें खाजी नखणे, (अणिहाके०) मुखyथंक परत्वे नहीं, (धुतकेसमंसरोमनहाके०) माथाना केश, गुह्यस्थानकना केश, दाढीमुनना केश, कारखली ना केश, शरीरनां रोम, तथा नख, समारे नही, (सव्वगायपडिक्कम विप्पमुक्का के०) सर्व गात्र एटले शरीरनी शुश्रूषा करवा थकी विप्रमुक्त, एटले मूकाणा थका, (चिहतिके०) रहे. ॥७॥ ( तेणंएतेणंविहारेविहरमाणा के०) तेसाधु एवा नग्र विहारे करी विचरता थ का ( बदुश्वासाइं के०) घणाएक वर्ष (सामनपरियागंपानणंति के० ) चारित्र पर्याय पाले. एवो चारित्र पाली (बदुबदुआबाहंसि के०) रोगादिकनी आबाधा ( उपन्नसिवा के ) उपनी, तथा (अणुपन्नंसिवा के ) अपनपने बते (बदुश्नत्ताइंपचारकाइके०) घणानात पाणी पञ्चरके. (पञ्चरकाश्त्ता के०) ते पञ्चरकीने (बदुश्वासाइंधणसणाईने दिति के०) घणा काल सुधी अनशन पाले, (अणसणाईचे दित्ता के०) ते अनशन पाली ने किंबहुना गुंजाजुंकहेवाथी? (जस्सहाएकीरतिके०) जे साधुधर्मने अर्थे थाधर्म एवोके, लोहगोलकनी पेठे निरास्वाद खड्गधारानी पेठे कुःसाध्य,एवो चारित्र पाले. (नग्गनावेकेण्) नग्नपणानो नाव एटले प्रमाणोपेत वस्त्रपहेरें, (मुंमनावे के०) पांचइंडियो तथा चार कवायनो संवर करे, (अण्हाणनावे के०) अंघोल स्नान नो त्यागनाव करे, (अदंतंव णगे के० ) दातण करवानो परिहार करे, (यबत्तएके ० ) मस्तकें बत्र धरावे नही, (अगोवाहणए के०) पगरखानो त्याग करे, (नूमिसेजा के०) नूमिकाने विषे शय न करे, (फलगसेजा के) पाट, पाटीया उपर शयन करे, (कठसेजा के ) काष्ठ, पाषाण उपर शयन करे ( केसलोए के० ) मस्तकें केशनो लोच करे, (बंनचेरवासे के० ) ब्रह्मचर्यने विषे वास करे, अर्थात् ब्रह्मचर्यने पाले, (परघरपवेसे के ) निदा ने अर्थ पारका घरने विषे भ्रमण करे, (लमाचल के०) त्यां परघर भ्रमण करतां कदाचित् निदान प्राप्तियाय, अथवा नथाय, तोपण समता नाव धरे, (माणाध मागणाउ के०) मान, अथवा अपमान, देता थका पण समता नाव धरे. (हीलणा
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