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द्वितीये सूत्रकृतांगे द्वितीयश्रुतस्कंधे द्वितीयाध्ययनं.
दमण, त्रण मास कमल, चतुर्मासिक, पंच मासिक, व मासिक, एवां तपना करनारा, ( अत्तरंच के० ) अथवा एक साधु एवा निग्रहना करनाराबे, ते कहेले. (उरिक तचरया के० ) प्तिचर्या एटले पोताने यर्थे हांमली मांहे यकी काढयुं एवं जे कु सार अन्न तेना जेनारा, (लिरिकत्तचरया के० ) निक्षिप्तचर्या एटले पिरसवाने अर्थे हां मांहेथी काढी वली हांमली मांहे प्रक्षेप्यो, एवो जे छाहार तेनी गवेषणा करनारा, (नरिकत्त लिरिकत्तचरगा के० ) पूर्वोक्त बन्ने जातना श्राहारनी गवेषणा करनारा, (अं तचरगा के० ) जे गाममांहे ससता मूल्यनो श्राहार मजे, तेना सेनारा, ( पंतचर गा के० ) नीरस याहार जमता थका, तेमांथी जे वध्यो होय तेना जेनारा, ( जूह चरगा के ० ) जावजीव सुधी लूखा आहारना जेनारा. ( समुदायचरगा के ० ) हर्ष सहित जे याहार या तेना लेनारा, (संसहचरगा के० ) खरडे हाथे आहार थापे तेना ले नारा, (संरगा के० ) प खरडे हाये छाहार खापे तेना लेनारा, (तकात संसचरगा के ० ) ते जे इव्यें हाथ अथवा कडबी खरडी होय तेवा हाथे करी, प्रथ तेवी कबीये करी, तेज आहार छापे, तेवा याहारना जेनारा, ( दिहलानिया के० ) दीवा हारनाज जेनारा, तथा (दिलानिया के० ) यादीगे खाहार, तथा दीवो दातार, गवेषण करना, (पुलानिया के०) तथा पुढीनेज हारना लेनारा, (पुलानिया के० ) यापुढया श्राहारना लेनारा, ( निस्कूला जिया के ० ) यो अन्न याने हेला करे एवा तु श्राहारना बेनारा, ( अनिरकूलानिया के० ) तुव हारना लेनारा, ( अन्नायचरगा के० ) ज्यां कोइ पण उलखे नहीं त्यां ज्ञात आहारना बेनारा, (अन्नाय लोगचरगा के ० ) खाज्ञात लोकना कुत्सित यन्नना नारा, ( नवनिहिया के० ) जे खाहार पोता थकी नजीक जाणे, तेना लेनारा, ( संखादत्तिया के ० ) दात्तिनी संख्याना करनारा, (परिमित्त पिंमवाइयाके० ) प्रमा लोपेत पिंमना नारा, ( सुदेसलिया के० ) शुद्धएषणिक दोष रहित एवा याहार नागवेषण हार, (अंताहारा के० ) अंताहारी एटले वाल, चणकादिकना याहारना गवेषनारा, ( पंताहारा के० ) तेज टाढूं नगखं, एवा यन्नना बेनारा, ( रसा हारा के० ) हिंग जीरादिकना वधारें रहित एवा घरस याहारना जेनारा ( विरसाहा रा के०) जूना धान्य खांमेलाना हारना बेनारा, ( जूहाहारा के०) जू याहारना नारा, (वाहारा के०) तुम्याहारना जेनारा, (अंतजीवी के ० ) अंताहारें जीवे, (पंतजीवी ho) प्रांताहारें जीवे, (प्रायं बिलिया के ० ) कूर, खडदना, बाकला लेइ, खायंबिल सदाय करे. ( पुरंमहिया के ) सर्व काल बे पहोर दिवस वित्या पढी याहार जमे, ( शिव गया के ० ) सर्वकाल निवी करे, विगय रहित अन्न जमे, (खमऊमंसाससीणो के ० )
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