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रायधनपतसिंघ बादाउरका जैनागम संग्रह नाग उसरा. एए सध्चरगा अससञ्चरगा तज्जात्तसंचरगा दिघ्लानिया अदिउला निया पुलानिया अपुलानिया निरकुलानिया अनिरकुलानिया अन्नायचरगा अन्नायलोगचरगा ग्वनिहिया संस्कादत्तिया परिमित पिंमवाश्या सुक्षेसणिया अंतादारा पंतादारा अरसादारा विरसादारा लूहाहारा तुबादारा अंतजीवी पंतजीवी आयंबिलिया पुरिमध्यिा विग या अमऊमंसा ससिणो णोणियामरसनो वाणाश्या पडिमागणा श्या उकडुआसणिया सङिया वीरासणिया दंमायतिया लगंमसाइ पो अप्पानडाअगत्तया अकंम्या अणिहुदा धुतकेसमंसरोमनदा सबगा यपडिकम विष्पमुक्का चिति॥शातेणं एतेणं विदारेणं विदरमाणा बदुर वासाई सामन्नपरियागं पानणंति बढुबदु आबादंसि नप्पन्नंसिवा अणु प्पन्नंसिवा बहुश्नत्ताई पच्चकाइ पच्चरकाश्त्ता बदुई वासाइं असणा बेदिति अणसणाई बेदित्ता जस्सहाएकीरति नग्गनावे मुंगनावे अ पहाणनावे अदत्तंवणगे अबत्तए अणोवादणए नूमिसेजा फलगसेका कम्सेका केसलोए बनचेवासे परघरपवेसे लक्षाअलघ माणाप्रमा पणानदीलणाम निंदणामखिंसणान गरदणा तङपान तालणानन चावयागामकंटगा बावीसंपरीसदो वसग्गअहियासिज्जति तमारा दंति तम आरादित्ता चरमेहि नस्सासनिस्सासेहिं अणंत अणुतरं निवाघातं निरावरणं कसिणं पडिपुरमं केवलवरणाणदंसणसमुप्पा.ति समुप्पा.तित्ता ततोपना सिङतिबुङति मुच्चंति परिसिवायंति सवायं ति सबकाणं अंतकरेंति ॥ ३ ॥ अर्थ-वली बीजे प्रकारें साधुना गुण देखाडे जे. ते यथा नाम एवी संनावनायें जे म कोइएक उत्तम संघयणवंत, महाबलें करी सहित अणागार जगवंत होय, ते केवा होय? तोके यो समितियें समिता, नाषासमितिये समिता, एटले सत्यनिरवद्य ना पाना बोलनार, एषणासमिति समिता, एटले बेंतालीश दोषरहित, आहारनी गवेष गाना करनार, (बायाणनंममत्तणिरकेवणासमितियेंसमिता) एटले माटीनुं नाजन, तथा मात्रा, धने वस्त्रादिक ने जयणायें पुंजीप्रमार्जीने मूकनारा, (उच्चारपासवणखेलसिंघाण
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