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________________ राय धनपतसिंघ बाहारका जैनागम संग्रह नाग दुसरा. ४ स्वपहरी व्यो, ( इमंमुमेह के० ) एने सर्वसुंमन करावो ( इमंतकेह के० ) एने अंगु कतना करो, ( इमंतानेह के० ) एने चिपटे करी ताडन करो, ( इमंडयं बंधक) ने पवाडे बाहु करीने बंधने बंधन करो, ( इमं नियल बंध करेह के ० ) एना हाथमां बेडी नाखीने बंधन करो, (इमंद डिबंध करेह) एने हडनुं बंधन करो, (इ मंचारबंध करेह के ० ) एने नाकसी बंधन करो, ( इमं नियलजुयल संकोडियमोडियंक Rebo) एने बेडीना युगलें करी संकोच करो, मोडिय एटले अंगोपांग जंग करी मरडो, अथवा एना हाथ पग संकोचीने बांधो, (इमंदन्नियंकरेह के ० ) एना हाथ बेदन करो, ( इमं पायनियं करेह के० ) एना पग बेदन करो ( इमंकन विन्नयंकरेह के० ) एमज एना कान बेदन करो, (इमनक्क हसी समुह नियंकरेहके ० ) एनुं नाक बेदन करो, एना होत, एनुं मस्तक, एनुं मुख, बेदन करो, (वेयगत हियंांग बहियं के ० ) एनं वेदबेद करो, एना जीवतांज हैयाने बेदो, कापो, एम करो. (इमं पुरकाप्फोडियंक रेहके ० ) एना शरीरनी खालने उपाडो एम करो, ( इमंणयपुष्पाडियंकरेह के० ) एनी यांख उखेडो एटले काढो, एम करो . ( इमंदंसणुप्पा डियंवसप्पाडियंजिनुप्पा डियंनलं बियंकरेह के० ) एना दांत काढो, वृषण काढो, एनी जीन काढो. एने उंचो बांधोएने कूप, पर्वत नदीने नाखो एम करो, ( घसियंकरेह के० ) एने पग बांधीने घसो, (घोलियं करेह के ० ) एने विषे खांबांनी पेठें घोलो, (सूलाइयंकरेह के ० ) एने शूली उपर धारोपण करो, (सूलानि नयंकरेह के ० ) एने त्रिशूलें नेद करो, ( खारवत्तियं करे ह० ) एने शस्त्रें करी बेदीने जू U नुं पाणी सींचो ( वनवत्तिर्य करेह के० ) एनुं शरीर मानें करी, कारों बेदो. (सीहपु यिंग करेह के ० ) एने सिंहने पुंबडे बांधो, (वसन पुयिंग करेह के ० ) एने बलदने पुंबडे बांधो ( दवग्गिंदद्वयं के०) एने दावानल मांहे बालो, (कागणिमंसरका वियंगंके ० ) एने काक पक्षीनु मांस काढीने खवरावो, तथा एनुं पोतानुं मांस काढीने एनेज खव रावो, (नत्तपाल निरुगंके ० ) एने जात पाणीनो निरोध करो, (इमंजावजीवंवहबंधक रेह ho) एने जावजीव सुधी बांधी मूको, वध, बंधन करो, (मंथन्न यरेय सुनेां कुमारेमारे ch0) एम एने बीजा के टलाएक शुन मारें करीने मारो, इत्यादिक एवा दंग तेने यापे. ६ ३ || दीपिका - धार्मिक पदमेव सविस्तरमाह । ( सेजहेत्ति ) तद्यथा । नामसंनावने । संाव्यंते यत्र नवे केचिदेवंभूतानराः ये कलममसूरादिषु पचनादिक्रिययाऽयताप्रयत्न वंतोनिष्क्रियाः क्रूराः मिथ्या अपराधं विना दोषमारोप्य दंडोमिथ्यादंडस्तं प्रयुंजंति । त था एवमेव प्रयोजनं विनैव तथाप्रकारानिर्दयाः पुरुषा स्तित्तिरिवर्तका दिप्राणिष्वयताः क्रू रकर्माणोमिथ्यादंडं प्रयुंजंति तेषां परिकरोषि तादृशः स्यादित्याह ( जावियसेत्ति ) या पिच Jain Education International For Private Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003652
Book TitleAgam 02 Ang 02 Sutrakrutang Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1880
Total Pages1050
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size42 MB
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