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________________ उG वितीये सूत्रकृतांगे वितीयश्रुतस्कंधे वितीयाध्ययनं. करेद श्मनकनन्सीसमुदबिन्नयं करेद वेयगदियं अंगदियं इमंपुरका प्फोडियं करेद इमंणयणुप्पाडियं करेद मंदसणुप्पाडियं वसणुप्पाडियं जि प्नप्पाडियं ग्लंबियं करेद घसियं करेह घोलियं करेह सूलाइयं करेह सूला जिन्नयं करेद खारवत्तियं करेद वप्नवत्तियं करेह सीदबियंगं करेद वसनपुचियंगं करेद दवग्गिदढयंगं कागणिमंसकावियगं नत्तपा पनिरुगं इमं जावजीवं वहबंधणं करेद इमं अन्नथरेणं असुनेणं कु मारेणं मारेद ॥६३ ॥ अर्थ-हवे वल्ली बीजा प्रकारे अधर्मिक पुरुषनो विशेष कहेले. यथादृष्टांतें नामएवी संनावनायें कोइएक पुरुष. कलम एटले वटाणा, चणा, मसूरनी दाल, तल, मग, मास एटले अडद, निप्फाव एटले वाल, (कुलब के० ) तुवर, (आलिंसंदग पतिमंथग मादिएहिं के० ) चनथ, कालाचणा, श्रादेलेइने जे धान्य विशेषले तेने पच न पाचनादिक क्रियायें करी पोताने तथा परने अर्थे (अयंते के०) घयत्नबता निर्दय जावें (कूरेके०) क्रूरपणे उष्ठ थको (मिबादंपति के ) मिथ्या दंम प्रयूजे (ए वमेव के०) एरीते (तहप्पगारे के०) तथा प्रकारे पूर्वोक्त जे (पुरिसजाए के) पुरुषजा ति ते निर्दय पणे तितर, वर्तक, लावक, कपोतपदी, कपिजलपदी, मृग. पामो, सूवर, मयूर, गौ नकुनादिक, जलचर घो,काचबो, बने नूजपुरी सर्प इत्यादिक प्राणीने विषेयर्थी अथवा अनर्थी थको यत्नविना निर्दय नावे क्रूर उष्ट थकोमिथ्यादंम प्रयूजे; एवा पुरुष ने परिवार पण एवोज सांपडे “ यथा राजा तथा प्रजा” इतिवचनात् ते देखाडेले. (जावियसेबाहिरियापरिसानव के०) जेपण तेनी बाहेरनी परिषदा होय (तंजहा के० ) ते कहेडे (दासेश्वा के० ) ए दास थापणी दासीनो पुत्र (पेसेवा के०) ए प्रेक्षक काम काज उपने ज्यां त्यां मोकल' (जयएश्वा के०) नृत ते मजूरीनो करना र, तथा (नाइनेश्वा के०) नागीक, षष्टादिक नागें कर्षणादिकने विषे प्रवत्त, (कम्मक रएश्वा के०) कामनो करनार प्रसि ते कर्मकर कहियें (नोगपुरिसेश्वा के० ) स्वतंत्र जोगने मात्रै राखेलो दास तेपण बाहेरनी परिषदा माहे को रूडो पुरुष होय. (तेसिं पियणं के०) तेनो पण (अन्नयरंसिवा के० ) अन्य कोई एकनो (यहालढुगंसिके) यथा शब्दादिक सांजलेलते पड़ी तेनो एवो न्हानो (अवराहसिके) अपराध नपने बते ते नायकना दासादिकपण ( सयमेवगुरुयंदमनिवत्तेश्के) पोतें तेने महोटो दंम करे. (तंजहा के०) ते केवा दंम करे. ते कहेले (मंदंमेह के०) एने दंमो, एनुं सर्व Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003652
Book TitleAgam 02 Ang 02 Sutrakrutang Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1880
Total Pages1050
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size42 MB
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