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________________ रायधनपतसिंघ बादाउरका जैनागम संग्रह नाग उसरा. १४३ तथाऽधर्मशीलाअधर्मस्वनावास्तथाऽधर्मात्मकः समुदाचारोयत्किंचनानुष्ठानं येषांते नवं त्यधर्मशीलसमुदाचारास्तथाऽधर्मेण पापेन सावद्यानुष्ठानेनैव दहनांकन निल बनादिके कर्मणा वृत्तिर्वर्तनं कल्पयंतः कुर्वाणाविहरंतीति कालमतिवाहयंति ॥६१॥ हण बिंद निंद विगत्तगा लोहियपाणी चंमा रुदा खुद्दा सादस्सिया न कंचण वंचण मायाणियडि कडकवडसाइ संपळगबदुला उस्सीला ज्व या उप्पडियाणंदा असादु सवा पाणावायाअप्पडिविरया जाव जीवाए जाव सबा परिग्गदान अप्पडिविरया जाव जीवाए सवन कोदान जाव मिबादंसणसल्ला- अप्पडिविरया सवाट पहाणुचरण म दण वामगंधविलेवणसद्द फरिसरसरूव गंधमलालंकारा अप्पडिवि रया जावजीवाए सवा सगड रहजाण जुगगिल्लिथिल्लिसिया संदमा णिया सयणासणजाण वाहणनोगनोयणपविबरविही अप्पडिविरया जावजीवाएसबा कयविक्कयमासमासरूवगसंववहारा अप्पडिवि रया जावजीवाए सबाहिरम सुवामधणधम मणिमोत्तियसंखसिलप्प वालन अप्पडिविरया जावजीवाए सबान कूडतुलकुडमाणाने अप्पडिवि रया जावजीवाए सबा आरंन समारंना अप्पडिविरया जावजीवाए J सबान करणकाराणा अप्पडिविरया जावजीवाए सवान पयण पायाणा अप्पडिविरया जावजीवाए सबा कुट्टणपिट्टणतऊणताड णवहबंधपरिकिलेसा अप्पडिविरया जावजीवाए जेआवमे तहप्प गारे सावजा अबोदिया कम्मंता परपाणपरियावणकरा जे अणारि एहिं कऊंति ततो अप्पडिविरया जावजीवाए ॥६॥ अर्थ-हवे एनो अधर्माचार कहे ते पोते अधर्मी बता बीजाने पण एवा आदेश बापे ते कहेने, के, (हण के० ) अरे एने हो, (हिंद निंद के०) कर्णादिक, दी शूलादिकें करी नेदी, (विगत्तगाके० ) एनां चर्म नखेडो, इत्यादिक कहीने प्राणीने सुःखना म पजावनार थाय, ए कारणे (लोहियपाणी के० ) सर्वकाल लोहीयें करी हाथ राताले परंतु ते जीवोने हणीने को वारें हाथ पण धोवे नहीं, (चंमा के०) तीव्रक्रोध, ( रुहा के ) रोष ध्यान, शोचरहितकर्मना करनार, (खुदाके ० ) हु उष्ट, नूंमा, (साहरिस Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003652
Book TitleAgam 02 Ang 02 Sutrakrutang Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1880
Total Pages1050
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size42 MB
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