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७४४ हितीये सूत्रकृतांगे वितीय श्रुतस्कंधे वितीयाध्ययनं. या के० ) अणविमास्या कार्यना करनार, (नकंचण के ) तथा गुलिकारोपणने विषे कध्वंमहोटुं करवु (वंचरण के०) वंचणा. एटले परने उगवानी बुधिराखे, जेम अनयकुमा रने चंप्रद्योतनी गणिकायें वंच्यो, तेनी पेठे वंचक, (मायाणियडि के०) वंचवानीबु हियें वाणीयानी पेठे मायानियड नियड एटले बगनी वृत्तियें वंचवाने अर्थे साधुने स्वरूपे रहे जेम उदायिराजाने चले कियें वंच्यो, मायो, तेनी पेठे जाणी लेवु (कूडके०) मृषा बोलवू. ( कवडसाइ के) कपट एटले रूप पालटवु तथा नाषादिक परावर्ति एटले प्रकारे ( संपनग के० ) तथा ते तोलानु न्यूनाधिक करवू तथा नेलसेलन करवू इत्यादिक व्यापार जाणवो (बहुला के० ) घणा बदुलकर्म, ते उपर योगी सन्यासीनी कथा जाणवी. (पुस्सीला के०) सुशील (मुवया के० ) पुष्टव्रत वाला (सुप्पडिया दा के०) दुःखें थानंद पमाडियें जेने दुःखें वर्ष पमाडिये मुराराध्य इत्यर्थः एवा (य सादु के० ) असाधु (सबा के ) सर्वथा प्रकारें (पाणावायाउ के० ) प्राणातिपात थकी, (अप्प डिविरया के ७) अनिवृत्या, (जावजीवाए के०) जावजीवसुधी ( जावसबाप रिग्गहा के० ) यावत् सर्वथा परिग्रह थकी, (अप्प डिविरया के) अनिवृत्या (जा वजीवाए के० ) जावजीव सुधी (सबतोकोहा के ० ) सर्वथा प्रकारे क्रोध थकी (जा वामहादसणसाना के०) यावत् मिथ्यात्व दर्शन शल्य थकी, (अप्प डिविरया के० ) अनिवृत्या. (सवाके०) सर्वथा (एहाणुचणके०) स्नान, (मदणके०) मर्दन. करावयूँ (वप्लके) वर्ण ते अंबीर, गुप्ताल, (गंधके०) सुवास, (विलेवणके०) विलेपन करवा थकी, (सदके०) शब्द, गीत, वाद्यादिकना (फरिसके०) आठ जातना स्पर्श, (रूवके०) रूप, सुंदराकारादिक, (गंध के०) कर्पूरादिकनी सुगंध ( मनालंकारा के०) माला, अलं कार ते थकी, (अप्पडिविरया के०) अनिवृत्या (जावजीवाए के०) जावजीव सुधी (सबाट के ) सर्वथा ( सगड के०) शकट एटले गाड (रह के ) रथ ( जाणके) वहेल (जुग के० ) पुरुषे नपाड्यो आकाश यान तथा ( गिनि के० ) मोली, अथवा चंटना पलाण (थिनिके० ) हस्तिना पलाण, (सिया के०) शिबिका. ते देशविशेष प्र सि६ यान शिबिका ( संदमाणियाके०) शिबिका देशविशेष अन्यजातिः (सयपासण जाणवाहण के० ) पर्यकादिक आसयान वाहनादिकना (नोग के० ) जोग थकी तथा (नोयण के० ) नोजन (पविबर के० ) घर वखारो (विही के० ) तेना विस्तारथी (अप्प डिविरया के ) अनिवृत्या (जावजीवाए के०) जावजीवसुधा (सबा के०) सर्व ( कयविक्कय के०) क्रय वक्रय एटले लेवो वेचवो (मास-मासरूवग के०) माष अर्ध माष रूपादिक (संववहारा के०) इत्यादिक लेवा देवा रूप व्यापार की (अप्पडि विरया के० ) अनिवृत्या. ( जावजीवाए के) जावजीवसुधी सर्वथा हिरण्य एटले रु
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