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________________ राय धनपतसिंघ बादाउरका जैनागम संग्रह नाग उसरा. १५ णिए अज्वा महिए अज्वा गोघायए अज्वा गोवालए अज्वा सोव लिए अज्ज्वा सोवणियंतिए॥॥ अर्थ-हवे गृहस्थ उद्देशीने अधर्म पद कहेले. ( सेएगई के ) ते गृहस्थ कोड एक महा निर्दय परलोक थकी न विहितो थको, संसारना सुख वांडतो तो जे कर्कश कर्म करे ते कहेले. (प्रायहेवा के० ) पोताने निमित्तें अथवा ( णायहेवा के० ) झातिने निमित्तें ( सयणहेवा के० ) स्वजनने निमित्तें (थागारहेउंवा के०) घरने नि मित्तें ( परिवारहेवा के० ) परिवारने निमित्तें ( नायगंवा के० ) परिचित एटले जा गेला पुरुषने निमित्तें (सहवासियंवाणिस्साए के) सहवासि एटले पाडोशीनी निश्रा ये, एटलां अकार्य करे, ते कहेले. (यज्वा के० ) अथवा (अणुगामिए के ) य कार्य करवाने अर्थे बीजो जतो होय तेनी पडवाडे जाय, ( अज्वाइवचरए के० ) अथवा अकार्य करवाने अर्थे तेने अनेक नपचार करे विश्वासे, (यज्वापडिपहिएके०) अथवा प्रतिपथिक एटले मार्गे जता माणासनी सन्मुख आवे (अउवासंघिदएके०) संधिबेदक, एटले चोरी करे, (अध्वागंग्लेिदए के०) अथवा ग्रंथिनेद करे, एटले गंठी बो डो थाय, (अवानरनिए के० ) अथवा बाली एटले गामरां चरावे (यवासोवरि ए के०) अथवा सूवर डुक्कर चरावे (यज्वावागुरिए के० ) अथवा वाघरी थाय, एटले मृग मारवानां कर्म करे (अवासोनगिए के० ) अथवा शकुनी एटले पदीने पाश नाखे, (अवामहिए के० ) अथवा माबी थाय, (अवागोघायए के०) अथवा गो घातक कसाइ थाय, गायने मारे, अथवा गोधाने नाथे (अवागोवालए के) गोवालि या पणु करे, इत्यादिक नीचकर्म करे, (यवासोवणिए के ) कुतरानो राखनार था य, (अड्वा सोवणियंतिए के० ) कुतराये करी शिकार खेले. इत्यादिक बधा मलीने चनद प्रकारे कर। अनेक जीवोनो विनाशकरे. ॥ ॥ ॥ दीपिका-अथ गृहस्थानुदिश्याधर्मसेवामाह । ( सेएगईयायहेउवा ) सएकः कदाचिन्निस्त्रिंशयात्मनिमित्तं झातिहेतुंवा अगारहेतुं गृहसंस्करणार्थ परिवारहेतुंवा झा तकः परिचितस्तं समुद्दिश्य सहवासिकं प्रातिवेश्मिकं निश्रीकृत्य एतानि कुर्यात् । तान्ये वाह । (अवेत्ति ) अथवेति पदांतरापेक्ष्या । गतमनुगबतीत्यनुगामुकः सचाकाये करणमनास्तं गवंतमनुगबति । अथवाऽन्यस्य विरूपकरणावसरापेक्षा उपचारकः स्या त् । अथवा नरभ्रेण चरत्यौरनिकः । अथवा सौकरिकः । अथवा शकुनिनिश्चरति शाकु निकः अथवा वागरिकः अथवा मात्स्यिकःअथवा गोघातकः अथवा गोपालत्वं श्रयति Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003652
Book TitleAgam 02 Ang 02 Sutrakrutang Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1880
Total Pages1050
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size42 MB
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