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________________ द्वितीये सूत्रकृतांगे द्वितीयश्रुतस्कंधे द्वितीयाध्ययनं . विषे रहस्यना करनार, ए सर्व प्रायः त्रसजीवोनी विराधना नकरे परंतु एकेंयिनी विराधनायें उपजीवन करे, ( गोबहुसंजया के० ) ते घणा संयत नहीं, ( गोबहुपडि विरया ho ) घणी हिंसा थकी निवर्त्या नथी, एटले सर्व प्राणातिपात विरमणव्रतादि कने विषे न प्रवर्ते; किंतु ? इव्य थकी केटलाएक व्रत पाले, अने सर्व विरतिनुं कारण जे सम्यक् दर्शनबे, ते गुण तेमांहे नथी ते कारणे, ( सङ्घपाणनूतजीवसत्तेहिं के० ) सर्व प्राणी, नूत, जीव, धने सत्वथकी अविरत, हिंसा थकी अविरत ( तेथप्पणी के० ) ते पाखमी पोते, ( सच्चामोसाई के० ) घणां सत्यामृषावचन ( एवं विनंजंति के० ) एम यागल केशे. जेरीतें बोले तेज कहेबे ( हंतो के ० ) हुं ब्राह्मण पणा की मने मादि वो नही, ( नेता के० ) अन्य क्रुादिकने हणवा. (य वेव के० ) तथा हुं वर्षोत्तम बुं, माटे मने खाज्ञा करवी नहीं एटले मने hi प्रदेश प्रापवो नही. तथा (अन्नेावेयवा के ० ) क्रुादिक श्राज्ञापयितव्यले एट जे तेमने यादेश यापवो. ( परिघेतो के० ) हुं वर्षोत्तमनुं, माटे मने बला कारें ग्रहण करवो नही, ( अन्ने परिघेतवा के० ) अन्य कुडादिकने बलात्कारें ग्रह करवा. (परितावेयवो के० ) तथा मने परितापवो नही, ( धनेपरितावेय tho) अन्य दिकने परितापवा. ( यहंा उद्दवेयवो के० ) तथा मने उपड़व करवो नही, तथा जीव, काया थकी रहित करवो नही, (अन्नंनदवेयवा के० ) अन्य दिने उपवो करवा. एम ते परपीडाना उपदेशना करनार मूढ, खसंबंध प्रजा पी (एवमेव कामे मुखिया के ० ) एरीते पूर्वोक्त प्रकारे ते मूढ परमार्थना अजाण थका farartner arraint विषे मूर्च्छित थका (गिद्धा के०) गृड एटले ते कामनोगना अनि U बता, (गढ़िया के०) कामनोगने विषे प्रासक्त बता (गर दिया के ० ) निंदवा योग्य, त्यंत प्रासक्त बता ( यशोववन्ना के० ) अध्युपपन्न एटले कामजोगने विषे एकाग्र चित्त थया बता ( जाववासा इंच पंचमाई के० ) यावत् चार पांच वर्ष सुधी अथवा ( बहसमा के० ) व अथवा दश वर्ष एटलो काल तेमांहे ते तीर्थिक (अप्पयरोवा ho) अल्पतर एटले अल्प काल सुधी (मुतयरोवा के ० ) अथवा घणा काल सुधी घर वास बांमीने ( जिजोगनोगाई के० ) वली काम जोग जे शब्दादिक विषयले तेने धर्म पांख जोगवीने, ( कालमासे कालंकिच्चा के० ) मरण प्रस्तावे काल करीने कांइ एक बालतपना प्रभावथी ( अन्नयरेसु खासुरिएस किब्बिसिएस ठाणेसु नववत्तारो नवं तिके) तेने अनेरा सुरिक किल्बिषीने स्थानकें उपज थाय, ( ततो विष्पमुच्चमाणे के० ) ते स्थानकथी श्रायुष्यने ये चवीने (नुकोनुकोएलमूयत्ताए के० ) वलीवली मनुष्य जव पामे, तोप एल एटले बोडा, काणा, अथवा मूयत्ता एटले मुंगा तथा 900 Jain Education International For Private Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003652
Book TitleAgam 02 Ang 02 Sutrakrutang Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1880
Total Pages1050
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size42 MB
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