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________________ राय धनपतसिंघ बादाउरका जैनागम संग्रह नाग उसरा. ६२३ मेहावि पुण एवं विपडिवेदेति कारणमावन्ने अहमसि कामिवा सो यामिवा जूरामिवा तिप्पामिवा पीडामिवा परितप्पामिवा गोअहं एव मकासि परोवा जंउकाश्वा जाव परितप्पाश्वा णोपरो एवमकासि एवं से मेदावि सकारणंवा परकारणंवा एवं विष्पडिवेदेति कारणमावन्ने से बे मिपाईणंवा जे तसथावरा पाणा तेएवं संघायमागबंति ते एवं विपरिया समावऊंति तेएवं विवेगमागबंति तेएवं विदाणमागबंति तेएवं संगतियं ति ग्वेदाए णोएवं विप्पडिवेदेति तंजदा किरियातिवा जावणिरएतिवा अणिरएतिवा एवंते विरूवरूवेहिं कम्मसमारंनेहिं विरूवरूवाई काम भोगाई समारनंति नोयणाए॥३२॥ अर्थ-हवे ए नियतवादी लोक ते पूर्वोक्त पुरुषकार कारणने बालत्व पणो मानीने पोताना मतनी स्थापना करे. (मेहाविपुणएवं विप्पडिवेदेति के० ) वली पंमित एवा नियत पद ग्राहो एम जाणे शुं जाणे ते कहेले. (कारणमावन्ने के०) सुख दुःख जे उपजेले तेने नियतटाली बीजो कारण कां जाणवो नही ते उपर कहे उरकामिवा सोयामिवा इत्यादि पाठनो अर्थ पूर्व प्रमाणे लखेडे हुं सुख दुःख अनुनकुं हुं शोक अनुनबुबु जुरुळ शरीरनो बल बोर्बु थायडे पीडा अनुनबुबुं परितापना अनुनकुंडं (णो थएवमकासि के०) ते में नथी कयुं किंतु नियतने नवितव्यताना बलयकी माहारे विषे आव्यो परंतु पुरुषकारादिक प्रमाण कांश नथी जे कारण माटे कोइपुरुष पोता ना आत्माने अनिष्ट नथाय एम वांडे तो शावास्ते ते झुं करवाने एवो करें के जे थ की ते कुखी थाय परंतु अहींया नियतज प्रमाणने (परोवा के०) अथवा पर एटले बी जो (जंउस्काइवा के०) जे काइ कुःख अनुनवेडे ( जावपरितप्पाइवा के०) यावत् परितापना अनुनवेडे ते पण (णोपरोएवमकासि के० ) तेणे कीयो नथी परंतु नियति भने नवितव्यताने योगेंज सर्व उपजेजे )एवंसेमेहाविके०) एम ते मेधावि एटले पंमित पुरुष (सकारणंवापरकारणंवा के० ) पोताने उखनो कारण अथवा परने उखनु का रण नवितव्यता ले परंतु नवितव्यता टाली बीजो कोइ पण कारण नथी ( एवं विप्प डिवेदेति के) एम ते नियतवादि जाणे के जगत माहे कोई एक पापना कर नारने पण ख उपजतुं नथी बने कोइएक मुकतना करनारने सुःख उपजे माटे अं हीया पुरुषजे ईश्वर तेनुं कारण कांपण नथी देखातुं किंतु (कारणमावन्ने के) निय तज कारण देखायने एमाटे नवितव्यता बलीटने दवे बीजो पण जे कांश जगत मांहे Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003652
Book TitleAgam 02 Ang 02 Sutrakrutang Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1880
Total Pages1050
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size42 MB
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