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________________ राय धनपतसिंघ बादाउरका जैनागम संग्रह नाग उसरा. ६१३ निसममागया सरीरमेव अनिनूय चिति एवमेव धम्मावि पुरिसादिया जाव परिसमेव अनिनय चिति सेजहाणामए वम्मिएसिया पढविजाए पुढविसंवुके पुढविअनिस्सममागए पुढविमेव अनिनूय चि एवमेव ध म्मावि पुरिसादिया जाव पुरिसमेव अनिनूय चिति सेजदा णामए रुके सिया पुढविजाए पुढविसंतुझे पुढविअनिसममागए पुढविमेव अनिनूय चिति एवमेव धम्मावि पुरिसादिया जाव पुरिसमेव अनिनूय चिति सेजदा णामए पुरस्करिणी सिया पुढविजाया जाव पुढविमेव अनिनूय चिति एवमेव धम्माविपुरिसादिया जाव पुरिसमेव अनिनूय चिति से जदा णामए उदगपुस्कलेसिया नदगजाए जाव नदगमेव अनिनूय चि ति एवमेव धम्मावि पुरिसादिया जाव पुरिसमेव अनिनूय चिति सेजहा णामए उदगबुब्बुएसिया नदगजाए जाव उदगमेव अभिनूय चिति एव मेव धम्मावि पुरिसादिया जाव पुरिसमेव अनिनूय चिति ॥२६॥ अर्थ-(इहखलुधम्मापुरिसादियाके०) आ संसारने विषे. खलु एवे वाक्यालंकारे धर्म जे सचेतना थचेतनारूप खनाव ते पुरुषादिक जाणवा एटले एम कयुंजे एनी यादिनुं करनार पुरुष शब्दे ईश्वर तेकारणे पुरुषादिक एम पाठ कह्यो तथा (पुरिसोत्तरायाके) पुरुषज जेने उत्तर एटले प्रधान तथा (पुरिसप्पणीया के०) पुरुष प्रणीत एटले ए नो अधिष्ठाता पण पुरुष ईश्वरजले तथा (पुरिससंनूयाके०) पुरुष थकीज उपना (पुरिस पड़ोतिता के० ) पुरुषजे ईश्वर तेणेज प्रगट कस्या जेम प्रदीप मणी अने सूर्यादिके घटपटादिक पदार्थ प्रगट कस्खा तेनी पेरे जाणी लेवू (पुरिसबनिसमामागया के०) जीवने जन्म जरा मरण रोग शोक वर्ण गंध रस स्पर्श मूर्तिपणो ए अनागतादिक धर्म ते सर्व पदार्थ ईश्वरना अनुगामी (पुरिसमेवअनियचिति के ) किंबहुना ए सर्व पुरुषनेज व्यापीने रहेजे (सेजहाणामए के० ) ए अर्थ उपर दृष्टांत देखाडे जेम णाम एवे संनावनाये (गंमेसिया सरीरेजाएके०) पुरुषने शरीरे गंम एटले गुंबडो रोग विशेष थाय ते तेज शरीरने विषे उपनो (सरीरेसंवुड़े के० ) तेज शरीरने विषे वृद्धि पाम्यो (सरीरे अनिसमामागए के०) शरीरने पळवाडेज अनुगत गामि (सरीरमेवथ नियचिति के०) शरीरने विषेज व्यापि रहे पण तेनो अवयव शरीर थकी बाहेर नथी ( एवमेव के०) एमज (धम्मावि के०) ए पदार्थ मात्रजेने ते पण (पुरिसादिया Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003652
Book TitleAgam 02 Ang 02 Sutrakrutang Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1880
Total Pages1050
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size42 MB
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