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________________ ६०१ राय धनपतसिंघ बादाडुरका जैनागम संग्रह नाग इसरा: पुवमेव तेसिं पायं जवति समा नविस्सामो अणगारा किंचा पुत्ता पसू परदत्तनोइणो निरकुलोपावं कम्मं लोकरिस्सामि सम ही ते पण पडिविरया नवंति सयमाइयंति अन्नेविया दयावे ति अन्नंपियायतं तं समगुजाति एवमेव ते इचिकामनोगेहि मुि या गिधा गढिया शोववन्ना सुद्धा रागदोसवसट्टा ते पोयमाणं समु वेदेति ते पोपरं समुच्चेदेति गोसाई पालाई नूताई जोवाई सत्ताई स मुछेदेति पढ़ीणा पुवसंजोगं प्रायरियं मग्गं संपत्ता इति ते पोढच्चाए पोपाराए अंतराका मनोगेसु विसन्ना इति पढमे पुरिसजाए तीव तचरीरएति दिए ॥ १९ ॥ अर्थ - (पुवमेव के०) एरीते पहेलोज ( तेसिंकें) तेनास्तिक मतिखोने ( पायंनवति के० ) एवो विपरीत ज्ञान होय के ( समान विस्सा मोके ० ) मे श्रमण संयति यश्शुं ( अणगाराके) घर रहित थइशुं ( किंचला के० ) परिग्रह रहित यइशुं (पुत्ता के ० ) पुत्र मित्र कलत्रादिथी रहित यश्शुं (अपसूके ० ) गोमहिषादिकथी रहित थइयुं (पर avisोके०) अन्यनो दीधेलो याहार जोगवीशुं पोते पचन पाचनादिक क्रियाथी रहित aj (निरकु के ० ) निक्षाचर बता (पोपावकम्मंणोक रिस्सामिके ० ) पाप कर्म सावधानुष्ठा न करी नहीं (समुडी एके० ) ऐवो नाव पडिवजीने सम्यकप्रकारे नवी सावधान थने पी नास्तिक नाव प्राप्त करे लोकायतिक मार्गे याव्या थका (तेयप्पलोयप्प डिविरया जवंतिके० ( ते आप पोते पापकर्म थकी अविरत थाय पोतानीज प्रतिज्ञा थकी चष्ट थाय एवा थका जे करे ते कहेले ( सयमाइयंतिके० ) सावधानुष्ठान हिंसा मृषावा दादिक स्वयं पोते खादरे ( अन्ने विद्यादियावेंतिके० ) अन्यने यादरावे (अन्नं पातं ho) अन्यको बादरतो होय ( तंसमपुजाणंतिके०) तेने अनुमोदे ( एवमेवते के० ) एते ते ( बिकामनोगे हिंडिया के० ) स्त्री संबंधी काम जोगने विषे मूर्च्छित (गा के० ) गृद्ध एटले तेना यभिलाषी ( गढ़िया के० ) अधिक काम जोगने विषे बंधाला ( योवना के० ) कामनोगने विषे एकाग्र चित्ते थया (लुदा के० ) लुब्ध थया ( रागदोसवसट्टा के ० ) राग द्वेषने विषे पहोता ( तेणोप्पा समुदेति के० ) ते पोताना श्रात्माने कर्म पास थकी न बोडावे ( तेणो परंसमुदेंति के० ) ते न्यने प कर्मबंध की नोडावे ( यो माई पालाई नूताई जीवाई सत्ता समुछे देंति के ० ) ते अन्य प्राणी नूत जीव सत्व तेने पण कर्म पास थकी बोडावी नशके एवा नास्तिक Jain Education International For Private Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003652
Book TitleAgam 02 Ang 02 Sutrakrutang Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1880
Total Pages1050
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size42 MB
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